वह काली रात….और ‘वो’
यह बात आज से लगभग पन्द्रह साल पूर्व की है।मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद डॉक्टर पटेल चौबेपुर में प्रैक्टिस शुरू कर दियें थें। रोज सुबह क्लिनिक पर जाना और देर रात वहां से आना उनकी नियमित दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था। अच्छी बात यह रही कि इलाके में होम्योपैथी ईलाज में उनकी ख्याति तेजी से बढ़ रही थी। नतीजा दो सौ से तीन सौ मरीजों को देखना पड़ता था इस वजह से घर लौटने में उन्हें अक्सर रात हो जाती थी। मगर पन्द्रह किलोमीटर की दूरी बजाज स्कूटर का साथ लिहाजा क्लीनिक से घर की दूरी थोड़ी आसान हो जाती थी। मगर वह जिस रास्ते से गुजरते थे अक्सर वह सुनसान वीरान रहती रही। एक तो मरीजों के प्रति सेवाभाव ऊपर से आगे बढ़ने की ललक कि वजह से दिन और रात के फर्क को भूलकर डॉक्टर पटेल अपने काम से फ़ारिग होने के बाद ही घर लौटते। मगर रात के अंधेरे में सायं सायं करती सड़क झींगुरों की आवाज उन्हें भयावहता का अहसास जरूर कराती थी। जबकि कई लोगों ने उन्हें उस बियाबान रास्ते से न लौटने सलाह दी थी।
एक दिन क्लीनिक का शटर गिराते गिराते रात के बारह बज चुके थें। बाजार एकदम खाली और रोड पर इंसानों और गाड़ियों का नितांत अभाव। दूर कुत्तों के भोकने की मध्यम आवाज आ रही थी। डॉक्टर पटेल ने अपनी पुरानी स्कूटर को किक मारा तो दो तीन बार के बाद वह स्टार्ट हो गयी। वह सुनसान वीरान रास्ते पर चले जा रहे थें । घुप्प अंधरे रास्ते पर स्कूटर की पीली रौशनी में जब सियार रास्ते को पार करते तो डॉक्टर पटेल को स्कूटर धीमा करना पड़ता। मगर वह घर जल्दी पहुँचना चाहते थें। क्योंकि उन्हें शौच की तीव्र इच्छा होने लगी थी। वह खुद को नियंत्रित करते हुए खड़ खड़ करती स्कूटर के साथ बढ़े जा रहे थे। बीच रास्ते में सड़क किनारे स्थिति एक पोखरे के पास अचानक से उन्हें तेज प्रेशर महसूस हुआ तो मजबूरन उन्हें स्कूटर रोकना पड़ा। वह उस पोखरे के बारे में कई कहानियां सुन चुके थें लिहाजा उनके शरीर में सिहरन सी होने लगी। मगर वह उधर न देखकर एक खेत की तरफ बढ़ें जिधर एक नाली में ट्यूबेल का पानी भरा था। वह सोचें कि शौच के बाद इस पानी का इस्तेमाल हाथ धोने वगैरह के लिए कर लेंगे। वह खेत की तरफ बढ़ें तो झींगुरों की आवाज तेज हो गयी थी। गन्ने के खेतों से रह रहकर सियारों की हूं हूं उ उ की आवाज माहौल को और डरावना बना दे रही थी।
किसी तरह खुद के डर को काबू में कर डॉक्टर पटेल फ़ारिग हो नाली की तरफ बढ़े तो उनके होश फाख्ता हो गयें। अरे यह क्या अभी तक जिस नाली में पानी था उसमें पानी तो दूर वह सुखकर धूल धूल जैसा हो गया था। उनके पास विकल्प था उस पोखरे की तरफ बढ़ने का। मगर वह जानते थें की वह पोखरा किस लिए कुख्यात है। उन्होंने तय किया कि पोखरे के पानी के इस्तेमाल की बजाय ऐसे ही घर चला जाय भले ही जाकर स्नान कर लूंगा। यह सोचकर वह पैंट की चैन चढ़ाए ही थे कि अचानक से उन्हें खिलखिला कर किसी के हँसने की आवाज सुनाई दी। पहले तो उन्हें उनका यह वहम लगा मगर जब फिर से वही हँसने की आवाज सुनाई दी तो वह चौंके…हां उनसे मात्र बीस फिट की दूरी पर कोई साया खड़ा था। वह भी किसी ऐसी लड़की का जिसने चमकते सितारे टाईप का सूट पहना हो मगर उसका चेहरा स्प्ष्ट नहीं था।
वह ठहाके लगाती हुई बोली।
ये डॉक्टर पोखरवा में जाके धोला हो…अइसे मत जा डॉक्टर…अब तक डॉक्टर की नब्ज बेहद तेज हो चुकी थी। वह बिना जवाब दिए पैंट की बेल्ट चढ़ाने लगें।
वह फिर खिलखिलाई ये डॉक्टर सुना न…हम तोके रोज देखिला… तोसे प्यार करीला डॉक्टर आज हमरे साथ समय गुजार ला डॉक्टर।
अब तक डॉक्टर पसीने पसीने हो चुके थें। मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ करने लगें। वह स्कूटर की तरफ़ बढ़ते हुए सोच रहे थें की मेरी शादी तय हो चुकी है। और यह ‘पोखरे वाली’ हमसे प्यार की बात कर रही है।
अचानक से वह रोनी आवाज़ में बोलने लगी ये डॉक्टर तोहार बियाह हो जाई हो मगर हमरे साथ आज रात रुक जा।
अब डॉक्टर का शरीर थरथराने लगा, मुँह सूखने लगा था। किसी तरह वो स्कूटर पर किक लगा रहे थे। दो चार बार के बाद स्कूटर स्टार्ट हुआ। इस दरम्यान हव कुछ दूर पर खड़ी होकर प्यार मनुहार संग हँस रो रही थी। और डॉक्टर बिना प्रतिक्रिया दिए स्कूटर पर बैठें किसी तरह घर पहुँच गयें।
रात किसी तरह बीती मगर सुबह डॉक्टर को तेज बुखार न वह बोल पा रहें थें न कुछ खा पी रहे थे। दूसरों का इलाज करने वाला शख्स खुद बीमार हो चुका था। घरवाले दवा ईलाज करा रहे थे। मगर कोई लाभ नहीं हुआ। अब तक चार दिन बीत चुके थें शरीर सुख कर कांटा बन चुका था। लोगों की उम्मीदें जवाब देने लगीं थीं। अचानक से एक लोग ने डॉक्टर के पिता जी से कहा कि बगल के गावँ में एक अघोरी रहते हैं। उन्हें भी दिखा दीजिये हो सकता है। बीमारी का कुछ और कारण हो। उनके पिता उठे और साईकिल ली पहुँच गये अघोरी बाबा के यहां। वह आयें तो देखते ही बोलें की यह दस मिनट में उठ खड़ा होगा अगर आज हम न आते तो ‘वह’ इसे ले जाती। आज के बाद इसे उस रास्ते से मत जाने देना। यह बहुत तरक्की करेगा। कुछ तंत्र मंत्र के बाद डॉक्टर दस मिनट में उठ बैठे और भोजन पानी सब कियें। उसके बाद वह कई सालों तक बीमार नहीं हुयें। और तरक्की तो इतनी कियें की पूछिए मत। डाक्टर पटेल उस रास्ते को एकदम से भूल ही गयें।
यह घटना बताते वक्त डॉक्टर पटेल का रोयां खड़ा हो जाता है। उन्होंने मुझे यह कहानी बताई थी।
कोई माने या न माने।
उस पोखरे के बारे में यह प्रचलित था कि उसमें कई लड़कियां डूब कर मर चुकी थीं।
विनय मौर्या।।
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