क्यों नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है?
क्यों नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है?
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1-नीलकंठ पक्षी का नाम दो शब्दों ‘नील’ और ‘कंठ’ से बना है।
2-इसका पंख और कंठ नीला और शेष में लालिमा होती है।
3-मनुष्य शरीर में दो तरह की नसें हैं जिसमें शिरा नस नीला और आर्टरी (Artery) लाल होती हैं। नीले में अशुद्ध रक्त और आर्टी में लाल रक्त होता है।
4-अस्वस्थता की स्थिति में शिरा (नीले नस) में ड्रिप लगता है
5-नीले नसों में रक्त-प्रवाह कम तथा आर्टी में तेज होता है।
6-मनुष्य शरीर में नीले नस में प्रवाहित रक्त को हार्ट शुद्ध करता है।
7-मनुष्य के शरीर के गले में स्थित थायराइड ग्लैंड में स्वास्थ्य-वर्धक हार्मोन्स बनता है।
8-यहां तीन चेक-वाल्व होते हैं।
9-विषपान के वक्त महादेव ने इन तीनों चेकवॉल्व को बंद कर दिया लिहाज़ा विष पेट और उसके बाद हार्ट तथा ब्रेन में न जा सका।
10-यही कारण है कि विषाग्नि से महादेव को जलन तो हुआ पर उसका प्राणघातक असर नहीं हुआ।
नीले रंग का महत्त्व
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1-यह विषाक्त होता है।
2-गगन (आकाश) और जल का रंग नीला होता है।
3-आकाश विराटता का सूचक तो पानी कोमलता और शांति का सूचक है।
4-नील की खेती होती है।
5-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार चैत्र महीने में बोई गई नील की फसल को आषाढ़ में काट लिया जाता है।
6-पौधे के नीचे के हिस्से तना और जड़ पर हल चला दिया जाता है।
7-जिससे इसके अवशेष वर्षा जल को खूब अवशोषित (संग्रहित) करते हैं।
8-खरीफ की फसल काट लेने के बाद भी नील पुनः बढ़ने लगता हैं।
9-पुनः उगने की वजह से संन्यासियों को नीलयुक्त वस्त्र पहनने का निषेध है।
10-नीलकंठ पक्षी खेत को क्षति पहुंचाने वाले कीटाणुओं को खाता है।
नीले रंग और कंठ की विशेषताओं के चलते यह पक्षी महत्वपूर्ण है।
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*सलिल पांडेय, मिर्जापुर।*
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