जानिए, कही आप राक्षसी या रक्त स्नान तो नहीं कर रहे, क्या होते है इसके परिणाम
जानिए, कही आप राक्षसी या रक्त स्नान तो नहीं कर रहे, क्या होता है परिणाम
– मोक्ष भूमि टीम
मनुष्य के जीवन में सुबह जागने से लेकर रात को सोने तक के दैनिक कार्यक्रमों का अपना महत्व है। शास्त्रों में इसे दैनंदिन सदाचार कहा गया है। साफ है दैनंदिन सदाचार कई नियम भी हैं। दैनंदिन सदाचार उल्लेख मनुस्मृति, आचार रत्न, विश्वामित्र स्मृति सहित अन्य पुराणों में भी है। शास्त्रों ने इसे स्वच्छता, शुद्धता व स्वास्थ्य तीनों ही कारणों से महत्वपूर्ण बताया है। विश्वामित्र स्मृति के अनुसार, विधिपूर्वक नित्य प्रात: काल स्नान करने से रूप, तेज, बल, पवित्रता, आयु, आरोग्य, निर्णय क्षमता और मेधा की प्राप्ति और दुस्वप्न यानि बुरे सपनों का का नाश होता है। शास्त्रों में स्नान का समय सूर्योदय से पहले निश्चित किया गया है। दक्ष स्मृति के अनुसार, उषा की लाली से पहले स्नान करना उत्तम है। इससे प्रजापत्य व्रत का फल मिलता है।
दक्ष लिखते हैं…
‘उषस्युषसि यतï स्नानं नित्यमेवारुणोदये. प्राजापत्येन तत् तुल्यं महापातकनाशनम..
नहाने से पहले पूरे शरीर पर मिट्टी लगाना भी उत्तम माना गया है, जिसे लगाते समय इस मंत्र का उच्चारण करने का विधान है-
‘अश्वक्रान्ते रथ क्रान्ते विष्णु क्रान्ते वसुन्धरे.मृत्तिके हर मे पापं यन्मया दुष्कृतं स
नहाते समय मंत्रोच्चारण
शास्त्रों में शरीर पर जल डालते समय इस मंत्र का उच्चारण कर सभी पवित्र नदियों का इस तरह आह्वान करना चाहिए-
‘गंगा च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती.नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन संनिधिम कुरु..’
( हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु व कावेरी नदियों! आप मेरे इस स्नान के जल में पधारिए।)
इसी तरह यदि गंगा स्नान कर रहे हैं तो गंगाजी के इस द्वादश मंत्र का जाप करना चाहिए
‘नन्दिनी नलिनी सीता मालती च मलापहा.विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी..भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी.द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशयो..स्नानोद्यत: पठेज्जातु तत्र वसाम्यहम. ‘
मुनि स्नान
यह स्नान ब्रह्म मुहूर्त में अर्थात तारों की छांव में 4 से 5 बजे के बीच किया जाता है। मुनि स्नान को सर्वोत्तम माना गया है. इस स्नान से सुख, शांति, समृद्धि, विद्या, बल, आरोग्य आदि प्रदान होता है।
देव स्नान
तीर्थ नदियों के आह्वान मंत्र के साथ स्नान क़ो देवता स्नान कहतेl हैं इसका समय प्रात:काल 5 से 6 के बीच होता है।देव स्नान को उत्तम माना गया है. देव स्नान करने से यश, कीर्ति, धन-वैभव, सुख-शान्ति और संतोष प्रदान होता है।
मानव स्नान
यह स्नान प्रात:काल 6 बजे से 8 बजे के बीच होता है।मानव स्नान को समान्य माना गया है. यह स्नान करने से सांसारिक कार्यो में सफलता मिलती है और परिवार में मंगल बना रहता है।
राक्षसी या रक्त स्नान
यह स्नान प्रात: 8 बजे के बाद किया जाता है।राक्षसी स्नान को निषेध माना गया है. राक्षसी स्नान करने से दरिद्रता, कलह, संकट, रोग और मानसिक अशांति प्राप्त होती है।
नहाकर जरूर दें सूर्य को अर्घ्य
सूर्य ऊष्मा और प्रकाश का ही नहीं बल्कि तेज का भी कारक है लिहाजा नहाने के बाद शास्त्रों में सूर्य अर्घ्य देने का विधान बताया गया है। ऐसा करने से जीवन में तेज की प्राप्ति होता है।
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