जीवन के प्रबंध का सूत्र है…. गणेश जी का स्वरूप
जीवन के प्रबंध का सूत्र है…. गणेश जी का स्वरूप
प्रथम पूज्य गणेश जी का मुख हाथी और वाहन मूषक दो विरोधी भाव के जीव(आकार) हमें सामंजस्य की शिक्षा प्रदान करते हैं ।
माता पार्वती की आदेश के अनुसार किसी को भी स्नान गृह में प्रवेश न करने देने के कारण पिता के कोप का भागी होने पर भी अपने कर्तव्य का कठोरता से पालन कर मातृ भक्ति का संदेश दिया गणेश जी का चरित्र के साथ-साथ स्वरूप में भी जीवन प्रबंधन का सूत्र समाहित है जिन्हें आत्मसात कर जीवन के दुख को कम कर जीवन को सकारात्मक रूप से सरल बनाया जा सकता है
01.लक्ष्मी जी के साथ पूजा…गणेश जी बुद्धि विवेक ०के देवता है धन वृद्धि के साथ अहंकार ना आ जाए मानव स्वभाव में धन से अहंकार बढ़ता है।
02..गणेश जी के हस्त मुद्रा (प्रशस्त )यह संदेश देता है कि व्यक्ति उच्च पद पर आसीन होने पर लोगों के जीवन के कष्ट को दूर करें
03..गणेश जी का लम्बा पेट इस बात की ओर संकेत करता है कि दूसरों की कमी जानते हुए भी समाज में उसे प्रदर्शित नहीं करना चाहिए ।
04..गणेश जी के लंबे कान इस भाव को जोड़ते हैं कि अपने आप को सरल बनाए रखें ताकि आसपास के लोग कि करुणा को आप सुन और समझ सके।
05..गणेश जी के सूड ये संदेश देता है की हमें नकारात्मक विचारों को धारण नहीं करना चाहिए व सकारात्मक रूप से आगे बढ़ना चाहिए ।
इस प्रकार विशिष्ट होने पर भी सामान्य व्यवहार,करुणा एवं सकारात्मक दृष्टि ने प्रथम पूज्य बनाया।
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