जरूर जलाये पवित्र कार्तिक में दीप, जानिए दीप दान का महत्व
10 अक्टूबर से 08 नवम्बर तक कार्तिक मास है ।
विशेष ~ गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अभी अश्विन मास है ।
महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान। दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए।
पुराणों में वर्णन मिलता है।
“हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।“
“स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम् । भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम् ।।
विष्णुसंकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा । कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि ।।”
पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है :
घृतेन दीपको यस्य तिलतैलेन वा पुनः। ज्वलते यस्य सेनानीरश्वमेधेन तस्य किम्।*
कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से क्या लेना है।*
अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार*
दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति*
दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही
स्कंदपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार
सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे ।। तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः ।।
कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है।*
कार्तिक में दीपदान का एक मुख्य उद्देश्य पितरों का मार्ग प्रशस्त करना भी है।
“तुला संस्थे सहस्त्राशौ प्रदोषे भूतदर्शयोः*
*उल्का हस्ता नराः कुर्युः पितृणाम् मार्ग दर्शनम्।।”
पितरों के निमित्त दीपदान जरूर करें।
पद्मपुराण, उत्तरखंड, अध्याय 123 में महादेव कार्तिक में दीपदान का माहात्म्य सुनाते हुए अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं ।
शृणु दीपस्य माहात्म्यं कार्तिके शिखिवाहन। पितरश्चैव वांच्छंति सदा पितृगणैर्वृताः।।
भविष्यति कुलेऽस्माकं पितृभक्तः सुपुत्रकः। कार्तिके दीपदानेन यस्तोषयति केशवम्।।
“मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को संतुष्ट कर सके। ”
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