Home 2022 प्रदोष व्रत : ऐसे रखें प्रदोष व्रत जानिए वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ

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प्रदोष व्रत : ऐसे रखें प्रदोष व्रत जानिए वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ

भगवान शिवजी की महिमा अपरम्पार है।

हर आस्थावान धर्मावलम्बी भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाते हैं।  तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव माना गया है। इनकी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है, साथ ही संकटों का निवारण भी होता रहता है। चान्द्रमास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है।  त्रयोदशी तिथि का मान प्रदोष बेला में होना आवश्यक है। प्रदोष बेला का शुभारम्भ सूर्यास्त के पश्चात् और रात्रि के प्रारम्भ को बतलाया गया है। प्रदोष बेला 2 घटी या तीन घटी यानि 48 या 72 मिनट का होता है। प्रख्यात ज्योतिषविद्  विमल जैन ने बताया कि कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर, शनिवार की सायं 6 बजकर 03 मिनट पर लगेगी, जो कि अगले दिन 23 अक्टूबर, रविवार की सायं 6 बजकर 04 मिनट तक रहेगी

प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 23 अक्टूबर, रविवार को होने से प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा।

ऐसे रखें प्रदोष व्रत
 व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुन: स्नान कर स्वच्छ वस्ïत्र धारण करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अॢपत करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है। शिवजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए स्कन्दपुराण में वॢणत प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण करना चाहिए। प्रदोष व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से पुण्य फलदायी है। श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ किए गए प्रदोष व्रत से जीवन में सुख सौभाग्य के साथ ही भोलेनाथ की कृपा से जीवन में उन्नति के मार्ग का सुयोग बनता रहता है।
वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ

 प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्त्व है। जैसे—रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति , गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति , शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।

— ज्योतिॢवद्  विमल जैन

Author: Admin Editor MBC

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