प्रदोष व्रत : ऐसे रखें प्रदोष व्रत जानिए वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ
भगवान शिवजी की महिमा अपरम्पार है।
हर आस्थावान धर्मावलम्बी भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाते हैं। तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव माना गया है। इनकी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है, साथ ही संकटों का निवारण भी होता रहता है। चान्द्रमास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। त्रयोदशी तिथि का मान प्रदोष बेला में होना आवश्यक है। प्रदोष बेला का शुभारम्भ सूर्यास्त के पश्चात् और रात्रि के प्रारम्भ को बतलाया गया है। प्रदोष बेला 2 घटी या तीन घटी यानि 48 या 72 मिनट का होता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर, शनिवार की सायं 6 बजकर 03 मिनट पर लगेगी, जो कि अगले दिन 23 अक्टूबर, रविवार की सायं 6 बजकर 04 मिनट तक रहेगी।
प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 23 अक्टूबर, रविवार को होने से प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्त्व है। जैसे—रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति , गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति , शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।
— ज्योतिॢवद् विमल जैन
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