धनतेरस को क्यों गलत है खरीददारी की अवधारना, क्या कहता है ज्योतिषीय द्रष्टिकोण
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धनतेरस के दिन सोना चाँदी, बर्तन, वस्त्र ,इत्यादि कुछ भी खरीदने का प्रमाण शास्त्र में उपलब्ध नहीं है। ये गलत परम्परा सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। ज्योतिष शास्त्र में क्रय विक्रय का मुहूर्त दिया गया है, उसके अनुसार किसी भी वस्तु का क्रय करना लाभप्रद होता है।
असल में धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन ख़रीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है।
कौन थे धन्वंतरि
शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरी का जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था। इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं।
सही नहीं है यह
ऐसा हम सुनते एवं करते आयें है.. कि धनतेरस से लेकर दीवाली तक लोग भगवान से सुख-संपत्ति और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। दीवाली के समय किसी नए बिज़नस की शुरुआत को शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन लोग अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों की सफाई कर उसे अच्छी तरह सजाते हैं और लक्ष्मी के आगमन के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन बर्तनों और आभूषणों की दूकानों पर काफी भीड़ देखने को मिलती है। धनतेरस के दिन जमीन, प्रॉपर्टी, कार खरीदने और किसी जगह इन्वेस्ट करने के साथ नए बिजनेस की शुरुआत करने को शुभ माना जाता है।परन्तु ये भेड़चाल ज्योतिषीय द्रष्टिकोण से सही नहीं है।
क्यों गलत है खरीददारी की अवधरना
आत्मकारक सूर्य की नीच स्तिथि एवं त्रयोदशी तिथि प्रदोष पर गोचर चन्द्रकुंडली में नीच व्ययेश की धन कुटुंब स्थान पर स्तिथि अस्तव्यस्त आत्मबल एवं मानव मनोदशा की परिचायक है। शायद इस प्रचंड गोचर प्रभाववश बनी दुर्बल स्वास्थ्य विषकरी स्तिथि को धन्वन्तरि द्वारा स्वर्णपात्र अमृत-कलश औषधि पान द्वारा संतुलित कर सकने की विधि बताई गयी। जिसको कालांतर में हमारे वैश्य समाज ने व्यापारिक लाभ कामना से गलत रूप में परिभाषित कर समाज को गुमराह कर अंधाधुंध खरीदारी को प्रलोभित किया।
अतः आप सभी से निवेदन है कि अंधाधुंध खरीददारी के बोझ से बचें।
प्रो. विनय पाण्डेय, ज्योतिष विभाग, BHU
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