ज़ब गंगा धारण करती हैं यमुना का रूप, काशी के तुलसी घाट पर उमड़ता है जनसमूह
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– तुलसी घाट की एक अनोखी परंपरा, जिसमें भगवान स्वयं करते हैं लीला
प्राचीन समय में तुलसी घाट अस्सी घाट का ही एक भाग था। 18 वीं शताब्दी में बालाजी पेशवा ने इस घाट का पक्का निर्माण करवाया साढे 400 वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास जी ने यहां लक्खा मेले में शुमार नाग नथैया मेले का शुभारंभ किया था। तुलसीदास जी ने यहीं पर आकर रामचरितमानस के कई खंडों की रचना की और यहीं पर ब्रह्मलीन भी हुए थे। इसी कारण से इसे तुलसी घाट के नाम से भी जाना जाता है। सन 1941 में इस घाट का पुनर्निर्माण बलदेव दास बिड़ला ने करवाया था। इस घाट पर काशी के द्वादश आदित्य में प्रथम प्रसिद्ध लोलार्क कुंड भी सम्मिलित है। धार्मिक दृष्टि से भी यह एक महत्वपूर्ण घाट है।
विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला. …
लक्खा मेले में शुमार विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला भी इसी घाट पर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को गोधूलि बेला में सायं 4:00 बजे संपन्न होता है। इसमें काशी नरेश सहित असंख्य लोग सम्मिलित होते हैं ।कुछ लोग घाट की सीढ़ियों पर तथा कुछ नाव पर ही बैठकर इस पारंपरिक मेले का आनंद लेते हैं। साढ़े 400 वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा शुरू किए गए इस पारंपरिक एवं अलौकिक लीला को देखने के लिए काशी का जनसमूह उमड़ पड़ता है। इस मेले को कालिया दमन के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष भी यह लीला 29 अक्टूबर को तुलसी घाट पर संपन्न होगी। हजारों और लाखों लोगों की संख्या में यहां लोग आकर इस लक्खा मेले का आनंद लेते हैं।
पौराणिक कथा
कृष्ण लीला के आयोजक और संकट मोचन मंदिर के महंथ प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र बताते हैं कि नाग नथैया का मूल महाभारत में वर्णित हैं। जब भगवान कृष्ण एक किशोर थे। वह अपने दोस्तों संग यमुना नदी में अपनी गेंद को खो देते हैं और इसी नदी में एक विषैला नाग कालिया रहता था और उसके विष का इतना प्रभाव था कि नदी का पूरा जल ही उसके विष से काला प्रतीत होता था। खोये गेंद को बाल कृष्ण वापस लाने के लिए नदी में कूद पड़ते हैं। इस जानकारी के साथ समस्त ग्रामवासी अनिष्ठ की आशंका से नदी तट पर पहुंचते हैं लेकिन जिस नाग के विष से पूरा गांव भयभीत था उसी नाग के अहंकार को नष्ट करके भगवान कृष्ण दिव्य रूप में उसके फन पर सवार होकर सबके सामने प्रकट होते हैं और इस तरह कालिया नाग का दमन करते हैं।
– शालिनी त्रिपाठी
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