छठ पर्व की शुरुआत कैसे हुई, कैसे मनाते है यह महापर्व. और आखिर कौन हैं छठी मैया…
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भारत एक ऐसा देश है जिसको त्योहारों का देश भी कहा जाता है। इन्हीं पर्व में से एक महा पर्व है जिसे हम छठ महापर्व के रूप में जानते हैं। भारत के बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। नहाए खाए से लेकर उगते हुए सूर्य को जल देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक पारंपरिक और ऐतिहासिक महत्व है।
प्रचलित कथाएं
इसके पीछे कई ऐतिहासिक कथा भी है ।पुराणों में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियव्रत को लेकर है।कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर राजा की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई ।लेकिन पुत्र मृत पैदा हुआ प्रियव्रत पुत्र के वियोग में अपने प्राण त्यागने शमशान की ओर जा ही रहे थे तभी उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रगट हुई। उन्होंने राजा से कहा कि वह सृष्टि के मूल प्रवृत्ति के छठे अंश में उत्पन्न हुए हैं इसलिए वह सृष्टि कहलाएंगे उन्होंने राजा को अपनी पूजा और दूसरों को भी अपने पूजा करने के लिए प्रेरित करने को कहा राजा प्रियव्रत ने अपने पुत्र की इच्छा के कारण देवी सृष्टि का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।कहते हैं यह पूजा कार्तिक शुक्ल की छठी को हुई थी। तभी से यह पूजा छठ पूजा के नाम से जानी जाती है ।इस कथा के अलावा एक कथा राम सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब राम सीता 14 साल का वनवास करके अयोध्या लौटे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राज सूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उत्कल ऋषि को आमंत्रित किया उत्कल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता माता ने उत्कल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिन तक सूर्य भगवान की उपासना की थी। तभी से इस दिन को सूर्य षष्ठीके नाम से जाना जाता है।
छठ पूजा चार दिनों का महापर्व है इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रती 36 घंटे का निर्जल,निराहार रहकर व्रत करते हैं।
पहला दिन_नहाए खाए
पहला दिन नहाए खाए कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के रूप में करते हैं। घर की साफ सफाई करके घर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद छठ व्रती स्नान करके पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन करके व्रत की शुरुआत करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू की सब्जी, चना की दाल, चावल ग्रहण किया जाता है।
दूसरा दिन खरन
कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रत धारी दिनभर उपवास करके शाम को भोजन करते हैं। खरना का प्रसाद लेने के लिए आसपास के लोगों को आमंत्रित किया जाता है ।वह साथ में गन्ने के रस में चावल के साथ दूध चावल का पीठा और घी चुपड़ी रोटी बनती है ।इसमें नमक और चीनी का उपयोग नहीं होता है।
तीसरा दिन संध्या अर्घ
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठी मां का प्रसाद बनता है। जिसमें ठेकुआ प्रसाद हर व्रत धारी बनाता है ठेकुआ गुड़ और आटे से तैयार होता है ।वही कसार चावल के आटे से बनता है ।इसके अलावा इस पूजा में फल और सब्जियों का विशेष महत्व होता है ।शाम को पूरी तैयारी के साथ बांस की टोकरी में अर्ध का सूप सजाया जाता है। और व्रती के साथ पूरा परिवार सूर्य को अर्घ्य देने जाते हैं ।सभी व्रती तालाब के किनारे या किसी सरोवर के किनारे इकट्ठा होकर एक साथ सूर्य देव को जल देते हैं ।सूर्य को जल और दूध का धार चढ़ाया जाता है ।और छठी मां का भरे हुए सूप से पूजा किया जाता है।
चौथा दिन उगते सूर्य की पूजा….
कार्तिक शुक्ल सप्तमी के सुबह में उगते हुए सूर्य को जल दिया जाता है व्रत धारी वही जाते हैं जहां वह शाम को सूर्य की उपासना किए होते हैं । और पिछले शाम की पुनरावृत्ति करते हैं ।अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और प्रसाद खाकर अपना व्रत पूरा करते हैं।
कौन है छठी मैया
सूर्य उपासना के मौके पर छठी मैया के जयकारे लगाकर उनकी पूजा करते हैं। वेदों के अनुसार छठी मैया को कुशा देवी के नाम से भी जाना जाता है। छठी मैया के बारे में कहा जाता है कि छठी मैया सूर्य देव की बहन है ।उनकी पूजा करने से और उनके गीत गाने से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं ।और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
– शालिनी त्रिपाठी
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