Home 2022 छठ पूजा – क्या है “कोसी भराई”, क्या महत्त्व और विधि है “कोसी सेवना” का

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छठ पूजा – क्या है “कोसी भराई”, क्या महत्त्व और विधि है “कोसी सेवना” का



छठ पूजा में कोसी भराई ( kosi bharayi) की परंपरा का खासा महत्व है। सूर्य षष्ठी की शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन किया जाता है। फिर अगले दिन दूसरे अर्घ्य की सुबह घाटों पर कोसी भरा जाता है।छठ महापर्व के दौरान व्रतियां कोसी (हाथी) भरने (Kosi Bharai ) की भी परंपरा निभाते हैं. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है, जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है। सूर्य षष्ठी की शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन करना बेहद शुभ और श्रेयकर माना गया है।

लोक आस्था का महापर्व छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें कोसी (हाथी) भरने की परंपरा है। इसमें मिट्टी के बने हाथी पर दीये बने होते हैं। कोई हाथी पर 6 मुँह का दिया , तो कोई 12 दीए का और कोई 24 दीए का रहता है । कोसी को लोग पहले अर्घ्य के बाद अपने घर के आंगन या छत में भरते हैं। फिर अगली सुबह दूसरे अर्घ्य के बाद मिट्टी के हाथी को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। छठ में पहले अर्घ्य के बाद रात में घर में और अगले दिन सुबह भोर में घाट पर कोसी भरते हैं. ऐसे में जिन लोगों की मन्नतें पूरी हुई होती है या जिनके घर में कोई मांगलिक कार्य हुआ होता है, वह कोसी के साथ साथ हाथी भी भरते हैं. जिसकी जितनी मन्नत होती है, हिसाब से हाथी भरा जाता है। छठ के समय मिट्टी से बने हाथियों का अमूमन बाजार देखने को मिलता है. ऐसे में मिट्टी का बना हाथी अभी के समय में 300 रुपये से 800 रुपये के बीच में बिक रहा है. बाजार में मिट्टी के डिजाइनर हाथी भी उपलब्ध हैं. हाथी के ऊपर ढक्कन होता है, उसमें लोग तेल भरते हैं और मनोकामना पूरी करने के लिए छठी मईया और सूर्य देवता को अपना आभार जताते हैं। छठ पूजा से पहले कम से कम चार या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलों का अर्कपात, केराव आदि रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है. फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी आदि सामग्रियां रखी जाती है। कोसी पर एक दीया जलाया जाता है, फिर कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरे सूप, डलिया, तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रखकर दीप जलाए जाते हैं. अग्नि में धूप डालकर हवन करते हुए छठी मइया के सामने माथा टेककर आशीर्वाद लिया जाता है। अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी के घाट पर दोहराई जाती है। यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मां का आभार जताती हैं। कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस राज रतजगा भी करता है। घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं, तो पुरुष भी इस कोसी की सेवा करते हैं। इसे ‘कोसी सेवना’ भी कहते हैं. जिस घर में कोसी की पूजा होती है। वहां रात भर उत्साह का माहौल होता है. काफी नियम और कायदे के साथ पहले अर्घ्य से दूसरे अर्घ्य तक कोसी की पूजा की जाती है और भगवान सूर्य का आभार व्यक्त किया जाता है।

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Author: Admin Editor MBC

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