काल सर्प योग :जानिये आखिर क्यों काशी के ज्योतिषविद नहीं मानते काल सर्प योग को , क्या हैं उनका स्पष्टीकरण
ज्योतिष के प्रामाणिक ग्रंथों में कहीं भी इस दोष की चर्चा नहीं विचार-सार कालसर्प की अवधारणा कहीं से भी शास्त्रीय नहीं है। इसीलिए इसे मान्यता नहीं दी जा सकती .
– प्रो. रामचंद्र पांडेय, पूर्व ज्योतिष विभागाध्यक्ष, बीएचयू
कालसर्प योग पूरी तरह मार्केटिंग का शब्द है। इसका ज्योतिष से कहीं कोई लेना-देना नहीं है।
–प्रो. नागेंद्र पांडेय, पूर्व ज्योतिष विभागाध्यक्ष संविवि
ज्योतिष के प्रामाणिक ग्रंथों में कालसर्प योग का जिक्र नहीं है।
जा रहा है।
-प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, पूर्व ज्योतिष विभागाध्यक्ष बीएचयू
ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प नामक कहीं कोई अवधारणा नहीं है।
-प्रो.सुभाष पाण्डेय, ज्योतिष विभागाध्यक्ष, बी एच यू
यह पूरी तरह से अशास्त्रीय हैं। कालसर्प के नाम से जनता को गुमराह किया
-प्रो. चंद्रमा पांडेय, पूर्व संकाय प्रमुख, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय, बीएचयू
आश्चर्य चकित करने वाला ये बातें आपको अचंभित कर सकता है। जिस कालसर्प योग की दोष शांति के लिए लोग हजारों-लाखों रुपयों का उपाय करते आए हैं असल में ज्योतिषशास्त्र उस दोष को प्रामाणिकता ही नहीं देता। इस संबंध में काशी के कई ज्योतिष शास्त्रियों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। यही नहीं कालसर्प योग के अस्तित्व को नकारते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डा. विनय कुमार पांडेय ने तो शोध पत्र ही लिख दिया है। उनका शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय शोधपत्रिका ‘नैसर्गिकी’ में प्रकाशित है।
डा. पांडेय के अनुसार पूर्व में दिल्ली संस्कृत अकादमी की ओर से आयोजित संगोष्ठी में विद्वानों ने कालसर्प योग के वजूद को सिरे से खारिज किया था। कालसर्प नकारने वाले विद्वानों में यहीं से सेवानिवृत्त प्रो. रामचंद्र पांडेय, विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, संकाय प्रमुख प्रो. चंद्रमा पांडेय, प्रो. सच्चिदानंद मिश्र, डा. सुभाष पांडेय, आचार्य चक्रपाणि, संविवि ज्योतिष पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय सहित अनेक विद्वान शामिल हैं।
सुप्रसिद्ध प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय के अनुसार ज्योतिष के किसी भी प्रामाणिक ग्रंथ में कालसर्प योग का वर्णन नहीं है। मत्सागरी, बृहज्जातकम, सारावली, वृहत्पाराशरी, होराशात्र सहित अनेक आदि ग्रंथों में कालसर्प नाम योग का जिक्र नहीं है। साथ में यह भी बताते हैं कि जब राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रह हों तो सिर्फ अशुभकारी ही नहीं होते है। ज्योतिर्विदों को ऐसी कुंडलियों का सूक्ष्म स्तर पर अध्ययन करना चाहिए। तब जाकर निर्णय सुनाना चाहिए। शास्त्रों में हर समस्या का हल बताया गया है। ज्योतिष किसी के अनिष्ट के लिए नहीं बल्कि अनिष्ट को दूर करने की राह है। हर दुर्गम परिस्थिति की शांति संभव है। बस अध्ययन की जरूरत है।
भ्रम का बोलबाला
डा. विनय पाण्डेय और डॉ सुभाष पाण्डेय बताते हैं कि कालसर्प के संदर्भ में अनेक भ्रांतियां फैलाई गई है। कालसर्प के समर्थक इसे 288 (144 राहु व 144 केतु) प्रकार का मानते हैं। हवाला देते हैं कि राहु व केतु के बीच में सभी ग्रहों के होने से यह योग बनता है। उपाय के लिए एक हजार से लेकर लगभग एक लाख रुपये तक का खर्च बताया जाता है। इसमें गंगा बंधन ‘आर-पार की साड़ी, फूल से बांधना’, स्वर्ण-चांदी के नाग-नागिन का दान, इसकी अंगूठी पहनना आदि उपाय बताए जाते हैं।
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