अक्षय नवमी पर आंवला के पेड़ के नीचे आखिर क्यों बनाया जाता है भोजन ? क्या है इस दिन की पूजा का विधान जो लाता है जीवन में सुख और सौभाग्य…
अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष का पूजा करने का विधान है।हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल अक्षय रहता है।और इसी दिन श्री कृष्ण ने कंस के विरुद्ध वृंदावन में जाकर जनमत तैयार किया था। इसे अक्षय पुण्य देने वाला व्रत भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं व पुरुष अच्छी सेहत, सौभाग्य, संतान सुख और समृद्धि की कामना से आंवले के पेड़ में समाहित विष्णु लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। वैसे तो कार्तिक महीने में पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व है। लेकिन इस तिथि पर स्नान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मान्यता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे खाना बनाने और उसे खाने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। पुराणों के अनुसार आंवला साक्षात विष्णु का स्वरूप माना जाता है यह विष्णु प्रिया है। इस पेड़ को छूकर प्रणाम करने मात्र से ही अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि इसके मूल में भगवान विष्णु और ब्रह्मा में रुद्र शाखा में मुनि गढ़, तना में देवता, पत्तों में वसु, फूल फलों में प्रजापति का वास होता है। इसलिए ग्रंथों में आंवले को सर्वदेव कहा गया है ।
पूजन विधि
आंवले के वृक्ष की पूजन विधि में महिलाएं स्नान करके आंवले के पेड़ के पास साफ सफाई करके उसकी जड़ में साफ पानी चढ़ाती हैं। फिर दूध से वृक्ष की जड़ों को भलीभांति सिचती हैं। इसके बाद वहां की मिट्टी सर पर लगाकर पूजा विधि प्रारंभ करते हैं। पूजन सामग्री से पेड़ की विधिवत पूजा करने के पश्चात 11 अथवा अपनी इच्छा अनुसार परिक्रमा करते हुए उसके तने पर सूती मौली लपेटकर पूजा संपन्न करती हैं। पूजन के पश्चात परिवार के साथ आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करते हुए परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।ऐसी मान्यता है कि इस प्रकार पूजन विधि संपन्न करने से सभी कष्टों का अंत हो जाता है और घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।
– शालिनी त्रिपाठी
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