काशी में जब राक्षसी बन जाती है एक दिन की देवी , प्रसाद में चढ़ता है बैगन और मूली
” कौन है त्रिजटा
” कहाँ हैं त्रिजटा का मंदिर
” आखिर क्यों पूजी जाती हैं त्रिजटा
हिन्दू धर्म में राक्षसों की पूजा की बात शायद ही सुनने को मिलती है। लेकिन प्राचीन नगरी काशी के एक मंदिर में राक्षसी की पूजा की जाती है। जी हां, बाबा काशी विश्वनाथ के दरबार से कुछ ही दूरी पर साक्षी विनायक मंदिर में त्रिजटा राक्षसी का मूर्ति है। यहां देश के कोने -कोने से लोग दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में खास चढ़ावा भी चढता है। यहां मूली और बैगन से भोग लगाया जाता है।
भगवान भोले की नगरी काशी जहाँ सभी देवता गण यक्ष यक्षणी सहित गन्धर्वो के भी स्थान है लेकिन इन्ही स्थानों में राक्षसी त्रिजटा का भी मंदिर हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक, त्रिजटा राक्षसी को सीता ने वरदान दिया था कि कार्तिक पुर्णिमा के बाद एक दिन उसकी सभी पूजा किया जाएगा । ऐसा तब हुआ जब जिस माता सीता को रावण हरण ले गया था। माता सीता का वास स्थान अशोक वाटिका में बनाया था। उस समय माता सीता की देखभाल त्रिजटा नामक एक राक्षसी करती थी। जब राक्षस माता को परेशान करते थे या उनपर कोई संकट की घडी आती थी तो त्रिजटा बराबर उस संकट से माता को बचाती थी। बाद में रावण को पराजित कर जब भगवान राम माता सीता को लेकर वापस जा रहे थे तब राक्षसी त्रिजटा ने सीता से अनुरोध किया को उसको भी साथ लेकर चलें। सीता ने कहा, ‘ये संभव नहीं है, लेकिन मैं तुमको वरदान देती हूं कि तुम शिव की नगरी काशी चली जाओ। यहां तुमको मुक्ति मिल जाएगी। तुम वहा वर्ष में एक दिन देवी स्वरुप पूजी जाओगी।’ काशी खंड में वर्णित है कि उसके बाद त्रिजटा राक्षसी बाबा काशी विश्वनाथ के दरबार चली आती है। यही विराजती है।
त्रिजटा को चढ़ाया जाता है मूली और बैंगन
अशोक वाटिका में आखरी दिन जब त्रिजटा कच्ची सब्जी मूली और बैगन लेकर बनाने पहुंचीं, तो पता चला सीता मां जा रही हैं। वो दौड़कर मूली और बैगन हाथों में लिए पहुंची थी। सीतामाता ने आशीर्वाद दिया कि कलयुग में एक दिन तुम्हारी देवी के रूप में पूजा होगी, जो सब्जी तुम मुझे खिलाने वाली थीं, वही तुम्हे भक्त चढ़ाएंगे।
मुक्ति के लिये किया था काशीवास
राक्षसी योनी से मुक्ति के लिए सीतामाता के कहने त्रिजटा काशीवास करने काशी आ गई और महादेव की भक्ति कर मोक्ष पाया।
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