पापों का हरण करती गंगा से भी प्राचीन नदी “वरुणा”
वरूणा नदी कोई साधारण नदी न होकर वह पौराणिक नदी है, जिसके नाम पर वाराणसी शहर का नाम पड़ा। वाराणसी वरूणा और असी नदी के बीच में बसा हुआ है, कहा जाता है कि इसी कारण इस शहर का नाम ‘वाराणसी’ रखा गया। पुराणों से भी पुरानी नगरी होने की मान्यता बनारस की है, पौराणिक मान्यता यह भी है कि इस शहर का न आदि है न अंत है। कलकल कर बहती सदानीरा मां गंगा इस शहर को तीनों लोको से न्यारी बनाती हैं।
पौराणिक महत्व:
वरूणा नदी का चार वेदों में से एक अथर्ववेद में ‘वरणावती’ नाम से उल्लेख देखने को मिलता है। इसके अलावा ब्रह्मपुराण में भी पवित्र वरूणा नदी का असी नदी के साथ महिमामंडन किया गया है। वहीं वरूणा नदी व वाराणसी के संबंध के बारे में एक कहावत भी प्रचलित है, ‘वरूणा पाप हरना, काशी पाप नाशी’, अर्थात् वरूणा नदी पापों का हरण करती है और काशी में पापों का नाश होता है।
वरुणा नदी का उद्गम स्थल:
विश्व प्रसिद्ध अलौकिक नगर काशी को वाराणसी नाम प्रदान करने वाली नदी वरुणा का उद्गम तीन जनपदों के सरहद से हुआ है। जौनपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ की सीमा पर स्थित इनऊछ ताल के मैलहन झील से वरुणा नदी का उद्गम हुआ है।
वरुणा नदी का प्रवाह:
वरूणा नदी प्रमुख रूप से वाराणसी तथा आस- पास के क्षेत्रों में प्रवाहित होती है तथा बनारस के आदिकेशव घाट में गंगा नदी में विलीन हो जाती है। वहीं यह नदी म.प्र. के कुछ भूभागों में भी बहती है, जहां इसे नर्मदा की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है।
अस्सी से कैसे मिली वरुणा नदी:
मान्यता है कि वरुणा नदी गंगा से भी प्राचीन है। मैलहन झील के दक्षिण पूर्व में भगवान इंद्र, वरुण, यम त्रिदेवों ने त्रिदेवेश्वर शिवलिंग स्थापित कर यज्ञ किया। देवता व ऋषियों के प्रसाद ग्रहण के उपरांत हस्त प्रक्षालन से मैलहन झील भर गई। त्रिदेव ने भर चुकी मैलहन झील से नदी खुदवा कर अस्सी नदी में मिलवा दिया।
– सौम्या सिंह
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