बनारस की खूबसूरती में चार चांद लगाता, लकड़ी से बना हुआ “काठवाला मंदिर
बनारस अपने आप में सभ्यता और संस्कृति की एक ऐसी नगरी है जहां विश्व भर से लोग आकर बसे और अपने साथ अपनी संस्कृति भी लाए तथा जाते- जाते बनारस में अपनी छाप छोड़ गए। उन्हीं छापों में से एक है बनारस के ललिता घाट पर स्थित काठ वाला मंदिर।
क्या है काठ वाला मंदिर
बनारस में गंगा के पावन तट पर जहां एक ओर श्री काशी विश्वनाथ जी विराजमान हैं। वहीं उनसे थोड़ी ही दूर पर नेपाल के पशुपतिनाथ के रूप में भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं। भगवान भोले नाथ का यह मंदिर ललिता घाट पर स्थित है। बताया जाता है कि 1843 में काशी के शासक द्वारा नेपाल के राजा राणा बहादुर शाह को जमीन का हस्तांतरण किया गया था। उसी स्थान पर वहां के राजा धर्मशाला समेत इस मंदिर का निर्माण करवाए थे।
मंदिर की स्थापत्य कला
यह मंदिर हुबहू नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर के जैसा है। स्थापत्य कला की बात की जाए तो इस मंदिर का निर्माण लकड़ी से किया गया है। लगभग 350 साल पुराने इस मंदिर के निर्माण में लगी ये लकड़ियां भी नेपाल से ही आई हैं। मंदिर का ढांचा पैगोडा शैली में है। जो आमतौर पर नेपाल और तिब्बत में अपनाई जाती है। आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि बनारस में अकेला यह ऐसा मंदिर है जिसके दीवारों पर एक उच्च कोटि की नक्काशी के साथ मूर्तियों को भी उकेरा गया है। इस मंदिर की दीवारों में कहीं कहीं कामसूत्र के चित्र भी उकेरे गए हैं। जिस कारण से इसे *मिनी खजुराहो* का भी नाम दिया जाता है।
कहां है यह मंदिर
जहां एक ओर पूरे भारत में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा होती है वहीं नेपाल के पशुपतिनाथ भी पूरे विश्व में विख्यात हैं। उनके इस स्वरूप का दर्शन करने के लिए देश विदेश से लोग आते हैं। यह नेपाली मंदिर वाराणसी में ललिता घाट पर स्थित है । यह वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन से 3.8 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और मणिकर्णिका घाट से 100 मीटर दक्षिण-पश्चिम में है। अब यह मंदिर काशी विश्वनाथ कोरिडोर के अंतर्गत ही आता है।
– सूरज चौबे
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