भय निवारण भैरव का सौम्य स्वरूप कमच्छा के बटुक भैरव
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी जो अदभुत है, अलौकिक है। जहां की गाथा शास्त्रों और पुराणों में भी मिलती हैं ऐसी काशी में बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सर्वेश्वर महादेव श्री काशी विश्वनाथ तो विराजमान हैं ही साथ ही शिव के पांचवें अवतार भी विराजते हैं
जी हां, काशी की मान्यता के अनुसार वाराणसी दो खंडों में विभक्त है, विश्वेश्वर खंड और केदारेश्वर खंड।
ऐसी स्थिति में दोनों खंडों की सुरक्षा की जिम्मेदारी शिव के पांचवें स्वरूप को मिली है। जहां एक ओर काशी खंड की सुरक्षा काल भैरव करते हैं, वहीं दूसरी ओर केदार खंड की सुरक्षा का भार बटुक भैरव को मिला है।
इन दोनों भैरवों के अतिरिक्त भी काशी में भैरव के आठों स्वरूप विराजमान हैं।
किंतु आज हम आपको केवल बटुक भैरव से जुड़ी कहानी ही बताएंगे। काशी में माना जाता है कि अगर आप काशी में दर्शन के लिए आए और भैरव के दर्शन नही किए तो आपके बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरे माने जाते हैं।
कहां है ये मंदिर
बटुक भैरव का यह मंदिर वाराणसी के कमच्छा क्षेत्र के अपने दो रूपों में विराजमान हैं। मान्यताओं के अनुसार इनके दोनों रुपों के दर्शन करने से ग्रह बाधा दूर होती है और पुत्र प्राप्ति की मनोकामना भी पूरी होती है। भैरव बाबा के पहले स्वरुप बटुक भैरव के दर्शन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही पुत्र प्राप्ति की मनोकामना भी पूरी होती है।
आप इस बात को जानकर आश्चर्य चकित होंगे की कोई देव एक ही प्रांगण में एक ही छत के नीचे दो स्वरूपों में कैसे विराज सकते हैं। लेकिन कमच्छा के इस मंदिर में भैरव का एक दूसरा स्वरूप भी देखने को मिलता हैं जिसे आदि भैरव कहते हैं। भैरव का यह रूप भी बाल रूप में है। इनके दर्शन से राहु केतु की बाधा दूर हो जाती है और भक्तों को आशीर्वाद मिलता है।
क्या है इस मंदिर की प्राचीन मान्यता
इस मंदिर का उल्लेख महाभारत कालीन कृष्णावतार में भी आता है। भगवान श्री कृष्ण ने पांडु पुत्र भीम को इंद्रप्रस्थ की रक्षा के लिए भीम को यहां तपस्या करने के लिए भेजा था। बाबा बटुक नाथ के प्रताप से ही इंद्रप्रस्थ की रक्षा संभव हुई। बाबा बटुक नाथ को काशी के केदार खंड के कोतवाल की मान्यता हासिल है, ठीक वैसे ही जैसे विशेश्वर खंड के कोतवाल के रूप में काल भैरव को कोतवाल की मान्यता प्राप्त है।
कैसे हुई बटुक भैरव की उत्पत्ति
प्राचीन काल में एक आपद् नामक राक्षस था। जिसने कठोर तपस्या करके यह वर प्राप्त कर लिया कि उसकी मृत्यु केवल पाँच वर्ष के बालक से ही हो सकती है और वह किसी अन्य प्राणी से नहीं मारा जा सकता है। इसके बाद उसने तीनों लोकों में आतंक फैला दिया। ऐसे में जब सभी देवता इस समस्या का समाधान खोजने का विचार कर रहे थे तभी उन देवताओं के शरीर से एक-एक तेजोधारा निकली और उससे एक पंचवर्षीय बटुक की उत्पत्ति हुई, जिसमें अद्भुत तेज था। इसी बटुक ने फिर बाद में आपद् नामक राक्षस का वध किया और बाद में आपदा उद्धारक बटुक भैरव के नाम से जाने गये।
राहु-केतु से संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए बटुक की साधना अत्यंत फलदायी है। रविवार को भगवान बटुक भैरव की साधना करने पर साधक को बल, बुद्धि, विद्या, मान-सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।
~ भैरव के आठों स्वरूपों के बारे में पढ़ने के लिए बने रहें मोक्ष भूमि के साथ।
– सूरज चौबे
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