कौन है काल भैरव ? क्यों कहा जाता है इन्हें काशी का कोतवाल ? क्या है इनके काशी आगमन की कथा ? और कहां पर स्थित है बाबा काल भैरव का भव्य दरबार ?
ऐसी मान्यता है कि काशी में यदि काल भैरव का दर्शन ना करें तो बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूरा नहीं हो सकता है। भगवान शिव की नगरी काशी की व्यवस्था संचालन की जिम्मेदारी उनके गढ़ संभाले हुए हैं। उनके गढ़ भैरव हैं। जिनकी संख्या 64है। तथा उनके जो मुखिया हैं उनका नाम बाबा काल भैरव है। बाबा काल भैरव को शिवजी का ही एक अंश माना जाता है।
काशी के कोतवाल….
बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि बिना उनकी अनुमति के कोई काशी में रह नहीं सकता है। मान्यता के अनुसार शिव के सातवें घेरे में बाबा काल भैरव विराजमान है। और इनका वाहन स्वान अर्थात कुत्ता है।इसलिए काशी के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां घूमने वाले तमाम कुत्ते काशी की पहरेदारी करते हैं।
काल भैरव के काशी आगमन की कथा….
पुराणों के अनुसार एक बार अपनी वर्चस्वता साबित करने के लिए भगवान ब्रह्मा जी और विष्णु जी शिवजी की निंदा करने लगे। जिससे शिवजी अत्यधिक क्रोधित होकर तांडव करने लगे। जिसके प्रभाव से प्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगी। इसी दौरान भगवान शिव में से उनके भीषण स्वरूप वाली आकृति भैरव के रूप में उत्पन्न हुई। भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की उंगली और नाखून से ब्रह्मा जी के सिर को चोटिल करके लहूलुहान कर दिया। जिससे भैरव जी पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया।ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव ने भैरव जी को एक उपाय बताया, उन्होंने भैरव जी को ब्रह्माजी के कटे हुए सिर को धारण करके तीनों लोकों की परिक्रमा करने को कहा। ब्रह्महत्या की वजह से भैरव जी काले पड़ गए थे। संपूर्ण ब्रह्मांड का भ्रमण करते हुए जब काल भैरव काशी पहुंचे तो इस दौरान इनका पीछा करते हुए ब्रह्महत्या काशी की सीमा में प्रवेश न कर सके। ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने पर काल भैरव अत्यधिक प्रसन्न हुए। और तभी से काशी की सुरक्षा में लग गए साथ ही उन्होंने काशी की सुरक्षा के लिए 8 चौकियां भी स्थापित की।
काल भैरव बाबा का भव्य दरबार..
वाराणसी कैंट से 7 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है। कैंट से ऑटो रिक्शा अथवा अपने साधन के द्वारा मैदागिन पहुंचकर यहां से पैदल ही बाबा के प्रांगण में प्रवेश किया जा सकता है। बाबा काल भैरव का मंदिर विशेश्वरगंज में स्थित है। बड़े से परिसर में बाबा की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सायंकाल में बाबा काल भैरव उत्पन्न हुए थे। और तभी से इस दिन को बाबा के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को भैरवाष्टमी भी कहते हैं। और इनकी वार्षिक यात्रा भी इसी दिन प्रारंभ होती है। एक पैर पर खड़े बाबा काल भैरव को काशी का दंडाधिकारी भी कहा जाता है।
प्रत्येक रविवार और मंगलवार को बाबा के दर्शन का विशेष विधान है। वाराणसी में नियुक्त सभी बड़े प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी बाबा विश्वनाथ और बाबा काल भैरव का दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि बिना काल भैरव बाबा के दर्शन का काशी विश्वनाथ के दर्शन का भी फल प्राप्त नहीं होता है। बाबा काल भैरव यहां के थाने में भी विराजमान है। भैरव बाबा को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।
– शालिनी त्रिपाठी
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