काल भैरव : मृत्यु पश्चात काशी में नहीं चलता शासन यमराज का, जानिए कैसे प्रगट हुए भैरव
भगवान शिव के रौद्र रूप हैं काल भैरव। काल भैरव के विषय में मान्यता है कि यह काल के भी काल हैं। जो इनकी भक्ति करता है उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है। मृत्यु भी इनसे डरती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति काल भैरव की भक्ति करता है उसके पाप स्वतः दूर हो जाते हैं और मृत्यु के पश्चात इनके भक्तों को शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है। कालभैरव को काशी का सकोतवाल कहा जाता है। काशी के विषय में मान्यता है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु काशी में होती है उसे यमदूत अपने साथ नहीं ले जाते क्योंकि यहां यम का शासन नहीं चलता है।
शिवपुराण में बताया गया है कि काशी ही मात्र एक ऐसा स्थान है जहां मृत्यु पाने वाले को नरक नहीं जाना पड़ता है क्योंकि यहां पर यमराज का राज नहीं चलता है। यहां के स्वामी हैं कालभैरव। काशी में मृत्यु पाने वाले का न्याय काल भैरव करते हैं। कालभैरव का न्याय यमराज के न्याय से भी कठोर है। इनके हाथों में एक सोटा है। काशी में मृत्यु पाने वाले का जो भी पाप होता है उसके पाप को दूर करने के लिए कालभैरव मृत व्यक्ति की आत्मा की सोटे से पिटाई करते हैं। जो जितना पापी होता है उसकी उतनी ही पिटाई होती है। पाप की सजा पाने के बाद आत्मा को पाप से मुक्ति मिल जाती है। इसके बाद व्यक्ति को शिवलोक में स्थान मिल जाता है।
प्राकट्य की कथा
स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में भैरव प्राकट्य की कथा है। एक बार ब्रह्मा केा पांचवे सिर ने महादेव को अपशब्द कहा। इससे क्रोधित होकर महादेव के शरीर से कपाल भैरव प्रकट हुए और ब्रह्मा के पांचवें सर को दाहिने हाथ की तर्जना के नाखुन से काट दिया। ब्रह्मा का मुख उनके हाथ से लटकता रहा। ब्रह्म हत्या से बचने के लिए उन्होंने महादेव से उपाय पूछा तो भोले भण्डारी ने त्रैलोक्य भ्रमण की बात कही। भ्रमण के दौरान नारद जी मिले और कपाल भैरव को काशी जाने को कहा। काशी आकर इस स्थल पर जब वे पहुंचे तो उनके हाथ में लटकता ब्रह्मा जी का सिर गिर गया। इस पर बाबा कपाल भैरव नृत्य करने लगे। रुद्र भैरव में स्थान पाने वाले काल भैरव को महादेव के रुद्रावतार से प्रकट हुए। महाराजा दक्ष के यह कुंड में सती के भस्म होने के बाद जब युद्ध शुरू हुआ तो दक्ष की ओर से लड़ने वाले सैनिकों का रक्त गिरते ही वे फिर उत्पन्न हो जाते। उस समय रुद्रावतार लिए महादेव ने काल भैरव को भेजा और बाबा काल भैरव ने खप्पर में रक्त भरकर पीते रहे।
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