महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल के छठे संस्करण का समापन सुरों की एक दिलचस्प शाम के साथ हुआ
15वीं सदी के रहस्यवादी कवि कबीर की विरासत, घाटों की विराटता और वाराणसी की गंगा-जमुनी संस्कृति को समेटे हुए, महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल के छठे संस्करण का समापन 20 नवम्बर 2022 को हुआ। प्राचीनतम नगर में सुबह की शुरुआत इंदौर घराना की हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायिका, रामा सुन्दर रंगनाथन की शानदार प्रस्तुति से हुई। उनके साथ तबले पर थे उस्ताद अख्तर हसन और सारंगी पर पं. भारत भूषण गोस्वामी।
महिंद्रा ग्रुप, कल्चरल आउटरीच के हेड और वाईस प्रेसिडेंट, जय शाह ने फेस्टिवल के बारे में कहा, “फेस्टिवल के इस संस्करण में अस्त होते सूरज ने हमारे दिलों को वाराणसी के लोगों, कलाकारों और श्रोताओं की मोहब्बत से रौशन कर दिया। हम वाराणसी से इस वादे के साथ विदा ले रहे हैं कि अगले साल फिर उम्मीदों से भरे इस फेस्टिवल के साथ के साथ लौटेंगे।“ टीमवर्क आर्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर, संजॉय के. रॉय ने कहा, ““पिछले दो दिनों में हमने कई शानदार परफॉर्मेंस देखीं, जिनमें थी नाटकीयता, संगीत और कबीर का दर्शन और ये सब हुआ समयातीत पावन नगरी काशी की पृष्ठभूमि में। हम उन सभी कलाकारों, साझेदारों और श्रोताओं के शुक्रगुजार हैं, जो दुनियाभर से कबीर के दर्शन को जीवित करने आए।“
सरोद उस्ताद, पंडित विकाश महाराज, और उनके साथ उनके बेटे, सितार वादक/गायक अभिषेक महाराज और तबलावादक प्रभाष महाराज ने अनटच्ड म्यूजिक ऑफ़ बनारस सत्र में बनारस घराना की दक्षता और बारीकी का खूबसूरत प्रदर्शन किया। करिश्माई पिता और पुत्रों ने अपनी असाधारण प्रस्तुति से श्रोताओं के दिल को पुलकित कर दिया।
फेस्टिवल में अपनी प्रस्तुति से रोमांचित, पंडित विकाश महाराज ने कहा, “हमने महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल के छठे संस्करण में हमने द महाराज ट्रायो के तौर पर परफॉर्म किया और आज प्रस्तुत की गई अधिकांश रचनाएँ मेरी अपनी ही थीं, जैसे कबीर और गंगा। बैंड के द्वारा परफॉर्म किया गए कुछ प्राचीन राग सैंकड़ों साल पुराने हैं, जिन्हें कभी बदला नहीं गया है।”
घाटों की नगरी में आयोजित दोपहर के सत्रों में कबीर के ज्ञान और उनके दर्शन पर फोकस था। फेस्टिवल में एक सत्र दास्तान गोई के माध्यम से कबीर दास के विचारों को प्रस्तुत करने का रहा। जिसमें पहली महिला दास्तानगो, फौजिया ने कबीर के दोहे बयां किये।
फेस्टिवल में अपने परफॉरमेंस पर फौजिया ने कहा, “हमने कबीर को लोककथाओं के नायक के रूप में प्रस्तुत किया, और ऐसा हमें उन्हीं की धुनों पर किया, ‘हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होश्यारी क्या’।” दास्तानगो के बाद, एक और सत्र कबीर पंघुडा अल्लाह राम का में पुरुषोत्तम अग्रवाल व विपिन हीरो ने फेस्टिवल के श्रोताओं को कबीर की रूह से परिचय करवाया। फेस्टिवल में अपनी प्रस्तुति से रोमांचित, पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा, “कबीर अपनी तरह के पहले या अंतिम नहीं थे, बल्कि वो असाधारण थे। अपने विचारों को उन्होंने अपनी आवाज में प्रस्तुत किया। उन्हें एक प्रेम कवि के रूप में न देखकर, उनके विचारों को दार्शनिक व विवेकशील रूप में समझे जाने की जरूरत है। किसी भी अन्य उत्तर भारतीय की तरह मेरे मन में भी कबीर की एक छवि रही है। महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल के माध्यम से मुझे ऐसे संवेदनशील श्रोताओं से जुड़ने का मौका मिला जिनमें कबीर के विचार झलकते हैं।“
शाम को शिवाला घाट पर हुए संगीत के मधुर प्रोग्राम में कंटेम्पररी फोक के जाने-माने कलाकारों ने प्रस्तुति दी, जिनमें शामिल थेः द तापी प्रोजेक्ट दृ योगेन्द्र सनियावाला, स्वाति मीनाक्सी, बीजू नाम्बिअर और गौरव कपाड़िया; गायिका-गीतकार जसलीन औलख, और कंटेम्पररी इंडिया फोक बैंड द रघु दीक्षित प्रोजेक्ट।
फेस्टिवल के बारे द तापी प्रोजेक्ट ने कहा, “हमने कबीर के अपने द्वारा बनाए गीतों पर प्रस्तुति दी। हर गाना आज मानो अपने मुकाम पर पहुंचा था, हर गीत ने श्रोताओं के दिलों को छू लिया।”
महिंद्रा कबीरा से जुड़े अपने अनुभवों पर दीक्षित ने कहा, “फेस्टिवल के छठे संस्करण में, मैंने जसलीन औलख के साथ कोलोब्रेट किया और ये यादगार अनुभव रहा। इस साल मैंने एक गाने में संत शेषनाथ और कबीर के विचारों को प्रस्तुत किया। मैंने कबीर के पारम्परिक गानों पर प्रस्तुति देने की योजना नहीं बनाई थी… लेकिन मैंने पहली बार फेस्टिवल के लिए कुछ नई रचनाएं बनाई।” साथ ही, औलख ने खुद को खुशकिस्मत कहा कि उन्हें कबीर के जन्मस्थल पर प्रस्तुति देने का मौका मिला।
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