आध्यात्म : क्या सच में हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं ?
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अधूरा ज्ञान बहुत खतरनाक होता है।
सबसे पहली बात, वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत या किसी अन्य धार्मिक ग्रन्थ में करोड़ शब्द लिखा ही नही है। हमारे धर्म ग्रंथों में 33 करोड़ नहीं बल्कि “33 कोटि” देवताओं (देवता न कि भगवान) का वर्णन है। ध्यान दें कि यहाँ “कोटि” शब्द का प्रयोग किया गया है, करोड़ का नहीं। संस्कृत में कोटि का दो अर्थ होता है: करोड़ एवं प्रकार।
हिंदी में हम जिसे करोड़ कहते हैं, संस्कृत में उसे कोटि कहा जाता है। युधिष्ठिर ने भी ध्यूत सभा में अपने धन का वर्णन करते समय कोटि शब्द का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ करोड़ था। किन्तु दुर्भाग्य है कि आधुनिक काल के विद्वानों ने 33 कोटि देवताओं का भी अर्थ सीधा सीधा अनुवाद कर करोड़ निकाल लिया।
दरअसल यहाँ कोटि का प्रयोग करोड़ नहीं बल्कि “प्रकार” के देवताओं के लिए किया गया है। उस समय जब देवताओं का वर्गीकरण किया गया तो उसे 33 प्रकार में विभाजित किया गया जो समय के साथ अपभ्रंश होकर “करोड़” के रूप में प्रचलित हो गया। दुःख कि बात ये है कि आज भी हम हिन्दू रटे-रटाये तौर पर बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारे देवी देवताओं की संख्या इतनी अधिक है।
इन 33 कोटि (करोड़ नहीं) देवताओं को वर्णन आपको किसी भी धर्म ग्रन्थ खासकर पुराणों में मिल जाएगा। 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रूद्र एवं 2 अश्विनी कुमार मिलकर 33 (12+8+11+2 = 33) देवताओं की एक श्रेणी बनाते हैं। आइये इन्हें जान लेते हैं।
12 आदित्य:
महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री अदिति से उत्पन्न 12 पुत्र आदित्य कहलाते हैं। अपनी माता अदिति के कारण उन्हें आदित्य कहा जाता है। वैसे तो देवताओं की संख्या कहीं अधिक है किन्तु आदित्यों में इन प्रमुख देवताओं की ही गिनती होती है। इन्हे ही “देवता” कहा जाता है। इंद्र देवताओं के राजा कहलाते हैं। ये 12 आदित्य वर्ष के 12 मासों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये हैं:
इंद्र
धाता
पर्जन्य
त्वष्टा
पूषा
अर्यमा
भग
विवस्वान (सूर्य)
अंशुमान
मित्र
वरुण
विष्णु (वामन)
8 वसु:
ये भगवान विष्णु और देवराज इंद्र के रक्षक माने जाते हैं। रामायण में इन्हे महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री अदिति का पुत्र बताया गया है किन्तु महाभारत में इन्हे ब्रह्मापुत्र मनु की संतान कहा गया है। ये पञ्चमहाभूतों (पृथ्वी, अग्नि, जल, पवन और आकाश) तथा तीन मुख्य खगोलीय पिंडों – सूर्य, चंद्र एवं नक्षत्रों का प्रनिधित्व करते हैं। ये हैं:
आप: जल का प्रनिधित्व करते हैं।
ध्रुव: नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सोम: चंद्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
धर: पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अनिल: पवन का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अनल: अग्नि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रत्युष: सूर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रभास: आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। यही वो वसु हैं जिन्हे श्राप के कारण गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लेना पड़ा था।
11 रूद्र:
ये भगवान शंकर के दूसरे रूप माने जाते हैं इसी कारण भगवान शंकर को हम “महारुद्र” भी कहते हैं। कहा जाता है कि इनकी सभी की उत्पत्ति भगवान शंकर से ही हुई है। हालांकि वामन पुराण में इन्हे महर्षि कश्यप और अदिति का पुत्र कहा गया है। इन्हे परमपिता ब्रह्मा और सुरभि (सभी गायों की माता) की संतान भी माना जाता है। ये हैं:
शम्भू
पिनाकी
गिरीश
स्थाणु
भर्ग
भव
सदाशिव
शिव
हर
शर्व
कपाली
2 अश्विनी कुमार:
इन्हे देवताओं का राजवैद्य माना तथा औषधियों का स्वामी माना जाता है। ये दो जुड़वे भाई हैं (जिनमे नासत्य बड़े हैं) जिनके माता पिता विवस्वान और सरन्यू हैं। ये सूर्योदय (नासत्य) और सूर्यास्त (दसरा) का प्रनिधित्व करते हैं।
नासत्य: महाभारत में ये माद्रीपुत्र नकुल के रूप में जन्में।
दसरा: महाभारत में ये माद्रीपुत्र सहदेव के रूप में जन्में।
तो इस प्रकार ये 33 कोटि देवताओं का वर्णन है।
कई लोग ये प्रश्न पूछते हैं कि अगर यही 33 देवता हैं तो अन्य देवता जैसे कार्तिकेय, गणेश, दुर्गा, काली इत्यादि का वर्णन कहाँ आता है। तो मैं ये बताना चाहता हूँ कि ये 33 प्रमुख देवताओं का केवल एक समूह है। इनके अतिरिक्त भी कई और देवी देवता हैं। लेकिन अब से उनकी संख्या 330000000 समझने की भूल ना करें।
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