जानिए, विद्वान और शिव भक्त रावण की पूरी बातें
जन्म स्थान पर मतभेद
– मनेंद्रगढ़ (छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में ) जन्मस्थान का किसी धर्म में वरण नहीं
– रावण का जन्म राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा स्थित बिसरख गांव में हुआ था।
पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने अनेक जल-जन्तु बनाये और उनसे समुद्र के जल की रक्षा करने के लिये कहा। तब उन जन्तुओं में से कुछ बोले कि हम इसका रक्षण (रक्षा) करेंगे और कुछ ने कहा कि हम इसका यक्षण (पूजा) करेंगे। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि जो रक्षण करेगा वह राक्षस कहलायेगा और जो यक्षण करेगा वह यक्ष कहलायेगा। इस प्रकार वे दो जातियों में बँट गये।
पौराणिक काल में राक्षसों में हेति और प्रहेति दो भाई थे। प्रहेति तपस्या करने चला गया, परन्तु हेति ने भया से विवाह किया जिससे उसके विद्युत्केश नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। विद्युत्केश के सुकेश नामक पराक्रमी पुत्र हुआ।
सुकेश के माल्यवान, सुमाली और माली नामक तीन पुत्र हुए। तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके यह वरदान प्राप्त कर लिये कि हम लोगों का प्रेम अटूट हो और हमें कोई पराजित न कर सके। वर पाकर वे निर्भय हो गये और सुरों, असुरों को सताने लगे। उन्होंने विश्वकर्मा से एक अत्यन्त सुन्दर नगर बनाने के लिये कहा। इस पर विश्वकर्मा ने उन्हें लंका पुरी का पता बता कर भेज दिया। वहाँ वे बड़े आनन्द के साथ रहने लगे।
माल्यवान के वज्रमुष्टि, विरूपाक्ष, दुर्मुख, सुप्तघ्न, यज्ञकोप, मत्त और उन्मत्त नामक सात पुत्र हुए।
सुमाली के प्रहस्त्र, अकम्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राक्ष, दण्ड, सुपार्श्व, संह्नादि, प्रधस एवं भारकर्ण नाम के दस पुत्र हुए।
माली के अनल, अनिल, हर और सम्पाती नामक चार पुत्र हुए।
ये सब बलवान और दुष्ट प्रकृति होने के कारण ऋषि-मुनियों को कष्ट दिया करते थे।
उनके कष्टों से दुःखी होकर ऋषि-मुनिगण जब भगवान विष्णु की शरण में गये तो उन्होंने आश्वासन दिया कि हे ऋषियो! मैं इन दुष्टों का अवश्य ही नाश करूँगा। जब राक्षसों को विष्णु के इस आश्वासन की सूचना मिली तो वे सब मन्त्रणा करके संगठित हो कर माली के सेनापतित्व में इन्द्रलोक पर आक्रमण करने के लिये चल पड़े। समाचार पाकर भगवान विष्णु ने अपने अस्त्र-शस्त्र संभाले और राक्षसों का संहार करने लगे। सेनापति माली सहित बहुत से राक्षस मारे गये और शेष लंका की ओर भाग गये। जब भागते हुए राक्षसों का भी नारायण संहार करने लगे तो माल्यवान क्रुद्ध होकर युद्धभूमि में लौट पड़ा। भगवान विष्णु के हाथों अन्त में वह भी काल का ग्रास बना।
शेष बचे हुये राक्षस सुमाली के नेतृत्व में लंका को त्याग कर पाताल में जा बसे और लंका पर कुबेर का राज्य स्थापित हुआ।
जारी है…शेष भाग अगले गुरूवार को
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