Home 2022 मोक्षदा एकादशी व्रत : इस व्रत से पितरों को भी मिलेता हैं मोक्ष, जानिये व्रत की सम्पूर्ण जानकारी

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मोक्षदा एकादशी व्रत : इस व्रत से पितरों को भी मिलेता हैं मोक्ष, जानिये व्रत की सम्पूर्ण जानकारी

भारतीय संस्कृति के हिन्दू सनातन धर्म में प्रत्येक माह की तिथियों एवं व्रत त्यौहारों की अपनी खास पहचान है। तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके सर्व मनोकामना की पूर्ति की जाती है। मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि की अपनी खास पहचान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मोक्षदा एकादशी के दिन भक्त अपने पिछले पापों का शमन एवं सुख-सौभाग्य की कामना से यह व्रत करते हैं।

मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 2 दिसम्बर, शुक्रवार की अर्धरात्रि के पश्चात 5 बजकर 40 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 3 दिसम्बर, शनिवार की अर्धरात्रि के पश्चात 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप 3 दिसम्बर, शनिवार को यह व्रत रखा जाएगा।

पूजा का विधान

व्रतकर्ता को व्रत के पूर्व (दशमी तिथि के दिन) रात्रि में कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी (व्रत) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् मोक्षदा एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है।

आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है। भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र ॐ नमो नारायण’ या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्र्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अॢजत करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि होती रहे।

पद्मपुराण में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठर को इस व्रत का महत्व समझाते हैं कि मोक्षदा एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी होती है। इस व्रत से मनुष्य के पापों का शमन होता है। द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन अपने सगे-सम्बन्धियों पर बाण चलाने से घबराने लगे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन, आत्मा और कर्तव्य के बारे में विस्तार से समझाया था। इसलिए इस दिन को गीता जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है।

— विमल जैन


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Author: Admin Editor MBC

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