क्यों हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम हम सभी के आदर्श
“रघु कुल रीति सदा चली आई प्राण जाई पर बचन न जाई”
भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्होंने कभी भी कहीं भी जीवन में मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए वह ‘क्यों’ शब्द कभी मुख पर नहीं लाए।
हम भगवान राम को इसलिए नहीं जानते कि वह एक प्रसिद्ध राजा के पुत्र थे अथवा एक प्रसिद्ध कुल में उत्पन्न हुए थे हम उन्हें इसलिए जानते हैं क्योंकि वे विशिष्ट व्यक्तित्व और उत्तम गुणों वाले व्यक्ति थे। जब भगवान राम बालक थे तब उनमें आदर सम्मान अभिवादन व शिष्टाचार का संस्कार था। हम सभी श्री राम को भगवान होने के कारण पूजते हैं, पर क्या एक मूर्ति की पूजा करना सचमुच में भगवान की पूजा करना होता है। वास्तव में मूर्तियों की पूजा करने से उत्तम है उनके गुणों की पूजा करना। हमें उनके चरित्र की सकारात्मकता को स्वीकार कर उनसे प्रेरणा लेना चाहिए और उसे अपने जीवन में अमल करना चाहिए।
श्री राम हम सभी के आदर्श :
भगवान राम को गंगा पार कराने के लिए जब केवट ने उनकी सहायता की तो श्रीराम ने उसे भवसागर के पार लगा दिया। सर्वगुणो की खान होने के बावजूद वे आम व्यक्ति ही बने रहे।
भगवान राम जब वनवास जा रहे थे तब उनके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी और जब उन्हें राजा बना दिया गया तब उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी। वे सांसारिक मोह माया से परे थे। उनमें इतनी शक्ति थी कि वह एक बाण से पूरा सागर सुखा सकते थे लेकिन उन्होंने लोक कल्याण के लिए विनम्र भाव से समुद्र से मार्ग देने की विनती की, जब वे सीता जी को ढूंढने लंका जा रहे थे। यह दर्शाता है कि व्यक्ति को सदैव विनम्र बने रहना चाहिए।
श्री राम ने शबरी के झूठे बेर भी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर खाए। आज के समय में जातियों का भेदभाव मनुष्य की एक दूसरे के प्रति इंसानियत खत्म करता जा रहा है। यदि वर्तमान युग में भी भगवान राम के आदर्शों को व्यक्ति अपने जीवन में अपनाले तो हर क्षेत्र में सफलता पाना आसान हो जाएगा। राम सद्गुणों के भंडार हैं इसीलिए लोग उनके जीवन को अपना आदर्श मानते हैं।
सहनशीलता की पराकाष्ठा :
सहनशीलता व धैर्य भगवान राम का विशेष गुण है। कैकेयी की आज्ञा से वन में 14 वर्ष बिताना, समुद्र पर सेतु बनाने के लिए तपस्या करना, सीता को त्यागने के बाद राजा होते हुए भी संन्यासी की भांति जीवन बिताना उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा है। स्वयं की भावना व सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया। फिर चाहे राज्य त्यागने, बाली का वध करने, रावण का संहार करने या सीता को वन भेजने की बात ही क्यों न हो।
भगवान राम का पवित्र और आदर्श जीवन यही प्रेरणा देता है कि हम उनकी मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने जीवन, अपने परिवार और अपने देश को सुखी और शांतिमय बनाने का प्रयास करें, अपनी मर्यादाओं का पालन करने के लिए चट्टान की तरह अडिग रहना, ये गुण हम श्रीराम के जीवन से सीख सकते हैं। श्रीराम का जीवन हमें सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी किस प्रकार धैर्य से काम लिया जाता है। सुख और दुख में किस प्रकार समान भाव से रहा जाता है। हमें विचार करना है कि हम कहां तक मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मर्यादाओं तथा उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास कर रहे हैं। भगवान राम ने जो आदर्श और भ्रातृप्रेम के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं उन आदर्शों को अपनाए बिना हम राम राज्य की कल्पना भी नहीं कर सकते।
– सौम्या सिंह
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