काशी का वो पवित्र स्थान जहां विराजते है मोक्ष प्राप्ति करने वालों का मनुष्य का लेखा जोखा रखने वाले भगवान
ये मंदिर बहुत ही प्राचीन है | यहां भगवान शिव के साथ यमराज भी विराजते हैं | ये मंदिर माँ गंगा के अवतरण से भी पहले का मंदिर है |यहां एक रहस्यमयी कुआँ भी है |यहां रूद्राभिषेक करने का अलग ही महत्व है | इस मंदिर मे ब्रह्म मुहूर्त में दर्शन मात्र से दस हजार गायत्री मंत्र के जप का फल प्राप्त होता है | ब्रह्म मुहूर्त में ही इस मंदिर के कपाट खुल जाते हैं | उसी समय पंडित जी मंदिर में आरती भोग सेवा आदि करते हैं |इस मंदिर में चार प्रहर आरती होती है |पहला आरती ब्रह्म मुहूर्त में दूसरा मध्यांतर मे, तीसरी आरती शाम में और एक रात में शयन आरती होती है |
इस मंदिर का महत्व
इस मंदिर की मान्यता है कि भगवान शंकर ने मोक्ष की प्राप्ति को जाने वालों का हिसाब किताब रखने के लिए यमराज को यह जिम्मेदारी दी थी | यहां पर एक रहस्यमयी (धर्म कूप) कुआ भी है जिसका निर्माण सूर्य पुत्र यमराज ने करवाया था |वहीं इस कुए के बारे में मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति इसमे देखता है और यदि उसकी परछाईं नहीं दिखाई देती है तो उसकी मृत्यु छह माह के अंदर तय है |यहां पर अगर अपने पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें अक्षय तृप्ति मिलती है |
क्यों पड़ा नाम धर्मेश्वर महादेव
इस धर्म कूप को लेकर पुराणों में मान्यता है कि यमराज का नामकरण यही होने के चलते यहाँ का नाम धर्मेश्वर महादेव मंदिर पड़ा |
पुराण में कहा गया है कि धर्मेश्वर के निकट कूप के जल से स्नान कर श्राद्ध करने से गया श्राद्ध के समान फल मिलता है. इतना ही नहीं कूप के जल से स्नान के बाद विश्वपादुका गौरी के दर्शन से ब्रह्म हत्या जैसे दोष से मुक्ति मिल जाती है. मान्यता यह भी है कि यहां सावित्री ने वटवृक्ष के नीचे सत्यवान की दीर्घायु के लिए तपस्या की थी. वटवृक्ष तो अब नहीं है लेकिन उसकी शाखा से निकले वृक्ष चश्मदीद गवाह के रूप में आज भी मौजूद है|
धर्म कूप को लेकर पुराणों में मान्यता है कि यमराज का नामकरण यही होने के चलते यहाँ का नाम धर्मेश्वर महादेव मंदिर पड़ा |
पुराण में कहा गया है कि धर्मेश्वर के निकट कूप के जल से स्नान कर श्राद्ध करने से गया श्राद्ध के समान फल मिलता है. इतना ही नहीं कूप के जल से स्नान के बाद विश्वपादुका गौरी के दर्शन से ब्रह्म हत्या जैसे दोष से मुक्ति मिल जाती है. मान्यता यह भी है कि यहां सावित्री ने वटवृक्ष के नीचे सत्यवान की दीर्घायु के लिए तपस्या की थी. वटवृक्ष तो अब नहीं है लेकिन उसकी शाखा से निकले वृक्ष चश्मदीद गवाह के रूप में आज भी मौजूद है|
– जया पाण्डेय
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