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महान तपस्वी गुरु विश्वामित्र जिन्हें प्राप्त है सप्तर्षियों में महान स्थान

विश्वामित्र के जीवन की कथा पुराणों की कुछ बेहतरीन कथाओं में से एक है। विश्वामित्र का जन्म कार्तिक शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को उनकी बहन सत्यवती के पति महान ऋषि ऋषीक के वरदान के फलस्वरूप हुआ था यधपि विश्वामित्र ने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया था। धर्म ग्रंथ और कई पौराणिक ग्रंथों के आधार पर बताया जाता है, कि कुशिक वंशीय प्रजापति के पुत्र कुश थे और कुश के पुत्र कुशनाभ थे, इन्ही कुशनाभ के पुत्र थे राजा गाधि, जो बड़े ही पराक्रमी, शूरवीर और प्रजापालक राजा थे। राजा गाधि के पुत्र हुए विश्वामित्र जो सौ पुत्रों के पिता और एक शक्तिशाली राजा थे इसलिए गुरु विश्वामित्र ब्राह्मणत्व प्राप्त करने से पहले एक क्षत्रिय राजा थे।

विश्वामित्र कैसे बने महर्षि :

ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिए गुरु विश्वामित्र ने कठोर तपस्या की, किन्तु गुरु विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने के लिए देवों द्वारा कई प्रकार के विध्न डाले गए, लेकिन गुरु विश्वामित्र ने बिना क्रोध किए उन सब का निवारण किया।
एक बार गुरु विश्वामित्र तपस्या समाप्त करने के पश्चात भोजन करने के लिए बैठे ही थे, कि एक भिक्षुक याचक के रूप में उनके पास आया और उनसे भोजन की याचना करने लगा। यह भिक्षुक कोई और नहीं बल्कि स्वयं देवराज इंद्र थे। गुरु विश्वामित्र ने उन्हें अपना सारा भोजन दे दिया और सोचा शायद अभी उनकी तपस्या की अवधि पूर्ण नही हुई है इसलिए ईश्वर ने इस याचक को मेरे पास पहुँचा दिया है। इसके पश्चात उन्होंने प्राणायाम करके और श्वांस रोककर कठोर तपस्या करना प्रारम्भ कर दिया। उनकी इस तपस्या से सारा ब्रह्मांड थर्रा उठा। तपस्या के फल से उनका तेज चारों दिशाओं में प्रकाशित हो रहा था। यह सब देखकर देवताओं ने ब्रह्मा जी से विनती की, हे ब्रम्हदेव! गुरु विश्वामित्र अब क्रोध और मोह की सीमा से परे हैं और तपस्या की पराकाष्ठा को भी पार कर चुके हैं। उनकी तपस्या के तेज से स्वयं सूर्य और चंद्रमा धुंधले पड़ गए हैं अब आपको उनकी इच्छा पूरी कर देनी चाहिए। देवताओं की विनती सुनकर बह्मा जी ने विश्वामित्र को ब्राह्मण की उपाधि प्रदान कर दी किन्तु विश्वामित्र ब्रह्मा जी से बोले हे ब्रह्मदेव! मैं अपने आपको ब्राह्मण तभी मानूंगा जब महर्षि वशिष्ठ मुझे ब्राह्मण और महर्षि समझेंगे। विश्वामित्र की यह बात सुनकर सभी देवता वशिष्ठ जी के पास गए और उन्हें सारी कहानी सुना कर उनसे आग्रह किया। तब वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र को गले से लगाया और कहा वास्तव में आप ब्रह्मर्षि है आज मैं आपको ब्राह्मण स्वीकार करता हूं।

ऋषियों के पूज्य :
गुरु विश्वामित्र के जीवन से त्याग, तपस्या और ऋषि-धर्म के उदाहरण मिलते हैं। चाहे वह श्री राम जैसे सम्राट का गुरु बनना हो या तप द्वारा देवताओं में हाहाकार मचाना हो, उनके जीवन की प्रखरता सर्वविदित है। इस प्रकार विश्वामित्र सभी देवी- देवताओं और ऋषियों के भी पूज्य बन गए और उनकी तपस्या के बल पर ही उन्हें सप्तर्षियों में महान स्थान प्राप्त हुआ।

– सौम्या सिंह

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Author: Admin Editor MBC

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