जानिए कौन थे शिव अवतार कहे जाने वाले लोक देवता तेजा
शिव के ग्यारहवें अवतार के रूप में जाने जाते हैं महाराज
लोक देवता तेजाजी का जन्म एक क्षत्रिय जाट घराने में हुआ था। उनका जन्म नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ल चौदस, विक्रम संवत 1130 (29 जनवरी 1074) में हुआ माना जाता था। तथा उस खेत को तेजाजी का धोरा नाम से जाना जाता है | उनके पिता गाँव के मुखिया थे। यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमलजी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी ‘लीलण’ पर सवार होकर अपने ससुराल पनेर गए। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर मीणा चुरा ले गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को हो गई तथा पेमल भी उनके साथ सती हो गई। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव-गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। तेजाजी का जन्म धौलिया गौत्र के जाट घराने परिवार में हुआ।
कुंवर तेजपाल सिंह जी को भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार माना जाता है |
तेजा जी का मंदिर
तेजाजी के भारत में अनेक मंदिर हैं। तेजाजी का मुख्य मंदिर खरनाल में हैं। तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गजरात तथा हरयाणा में हैं। मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके क्षत्रिय जाट उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है। पी.एन. ओक अपनी पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace में 100 से भी अधिक प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। अभी वीर तेजाजी के मंदिर की नीव 9 जून 2022 रखी गई । जिससे आने वाले समय मे एक विशाल मंदिर ओर पर्यटक स्थल बनेगा जिसका नाम तेजाणा होंगा। ओर यह मंदिर अभी 400 करोड़ की लागत में बन रहा है।
वीर तेजाजी खरनाल मेले का आयोजन –
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशवीं को तेजाजी Archived 2021-05-06 at the Wayback Machine की याद में खरनाल गाँव में भारी मेले का आयोजन होता हे जिसमे लाखों लोगों की तादात में लोग गाजे-बाजे के सात आते हैं।
सांप के ज़हर के तोड़ के रूप में गौ मूत्र और गोबर की राख के प्रयोग की शुरुआत सबसे पहले तेजाजी ने की थी।
लोक देवता तेजाजी का गौ रक्षा के लिए हुआ मार्मिक बलिदान उनको लोकदेवता की श्रेणी में ले आया।
गाँव का चबूतरा ‘ तेजाजी का थान ‘ कहलाता है। अन्य मन्दिर-लादडिया , सरसरा
– जया पाण्डेय
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