भजन-कीर्तन में ताली बजाने का क्या है मायने ? कुछ यूँ हुआ इसका शुरुआत होते है ये होते है लाभ
अक्सर मंदिरों में, घरों में या हर उस जगह पर जहां भजन-कीर्तन चल रहा हो, ताली बजाने की परंपरा है। अब सवाल ये उठता है कि ऐसा करने के पीछे का कारण क्या है।
कैसे हुई ताली बजाने की शुरुआत?
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ताली बजाने की शुरुआत सर्वप्रथम भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद ने की थी। दरअसल, प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को उनकी विष्णु भक्ति कतई नहीं भाति थी।
प्रहलाद किसी भी तरह भगवान विष्णु की पूजा-आराधना न कर सकें इसलिए हिरण्यकश्यप ने सारे वाद्य यंत्रों को नष्ट कर दिया था। तब बालक प्रहलाद ने भगवान श्री हरि विष्णु के भजनों को ताल देने के लिए हाथ से ताली बजाना शुरू कर दिया था।
चूंकि दोनों हथेलियों को निरंतर पीटने से एक अलग ही ताल का निर्माण हुआ और वह ताल की धुन सभी तक पहुंचने लगी इसी कारण से उसे ताली कहा गया। बस इसी के बाद से हर भजन-कीर्तन में ताली बजाने की परंपरा शुरू हो गई।
क्यों बजाई जाती है ताली ?
ऐसा माना जाता है कि भजन, कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से हम इश्वर को पुकारते हैं। भगवान के ऊपर समस्त सृष्टि का भार है इसी कारण से उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए ताली बजाई जाती है।
ताली बजने के लाभ
माना जाता है कि भजन-कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से पापों का नाश होता है।
भजन-कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से आसपास विचरण कर रही नकारात्मकता दूर हो जाती है।
भजन-कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से व्यक्ति की आत्मा चेतना में रहती है और उसका ध्यान भगवान की ओर लगा रहता है।
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