पूजा-पाठ में सिंदूर और कुमकुम का होता है अलग-अलग प्रयोग, बिना अंतर जानें न करें ये भूल
हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान सिंदूर और कुमकुम का प्रयोग अक्सर देखा जाता है। लाल रंग होने के कारण ज्यादातर लोग इसे एक ही समझ लेते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिंदूर और कुमकुम में बहुत अंतर होता है और पूजा में दोनों का इस्तेमाल भी अलग-अलग रूप में किया जाता है।
क्या होता है सिंदूर?
– सिंदूर का पूजा में इस्तेमाल ज्यादातर भगवान को अर्पित करने के लिए किया जाता है।
– सिंदूर सुहाग की निशानी माना जाता है और पति की लंबी उम्र के लिए इसे सुहागिनें अपनी मांग में भरती हैं।
– सिंदूर का शुभ चिह्नों जैसे स्वास्तिक, नारियल या कलश पर लगाया जाना भी वर्जित माना गया है।
– सिंदूर को कभी भी पैरों में रखा या लगाया नहीं जाता है।
– यहां तक कि हिन्दू धर्म में खुद का सिंदूर किसी अन्य को देना भी अशुभ माना जाता है।
– कुछ हिस्सों में यह भी देखने को मिलता है कि सिंदूर का रंग नारंगी होता है।
– वहीं, ज्यादातर प्रान्तों में लाल रंग के सिंदूर का ही प्रयोग किया जाता है।
क्या होता है कुमकुम ?
– कुमकुम का इस्तेमाल पूजा में अवश्य होता है लेकिन इसे भगवान को अर्पित नहीं किया जा सकता है।
– कुमकुम को शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्यों के दौरान महिलाएं पैरों में लगाती हैं।
– यहां तक कि जब नई बहु घर में आती है तो कुमकुम से ही उसके पैरों की छाप बनाई जाती है।
– कलश, स्वास्तिक या नारियल पर कुमकुम का ही तिलक लगाया जाता है।
– अपने पास रखा कुमकुम किसी अन्य को भी दिया जा सकता है।
– कुमकुम को ज्यादा से ज्यादा बांटना घर में शुभता लाता है।
– कुमकुम का एक ही रंग होता है जो लाल है। इसके अलावा, कुमकुम किसी अन्य रंग में नहीं आता है।
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