Home 2022 आज से शाकंभरी नवरात्रि की शुरुआत, जानिए आराधना पद्धति,शाकंभरी देवी की स्वरूप और पौराणिक कथा

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आज से शाकंभरी नवरात्रि की शुरुआत, जानिए आराधना पद्धति,शाकंभरी देवी की स्वरूप और पौराणिक कथा

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022 से पौष मास की शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri 2022) प्रारंभ हो रही है। यह नवरात्रि गुप्त नवरात्रि की तरह ही अत्यंत महत्व की मानी गई है। इस नवरात्रि के दौरान 9 दिनों में देवी की पूजा-आराधना की जाती है। 30 दिसंबर पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू हुई शाकंभरी नवरात्रि 6 जनवरी 2023 पौष शुक्ल पूर्णिमा तक मनाई जाएगी तथा पूर्णिमा के दिन ही मां शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाएगी।

शाकंभरी स्वरूप –

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में से एक देवी शाकंभरी (Shakumbhari Devi) मानी गई हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से शाकंभरी, रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी आदि प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में मां शाकंभरी का वर्ण नीला बताया गया है, उनके नेत्र नील कमल के सदृश कहे गए हैं तथा इन्हें पद्मासना अर्थात् कमल पुष्प पर विराजित हैं, जहां उनकी एक मुट्ठी में कमल पुष्प और दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है।

शाकंभरी नवरात्रि के शुभ मुहूर्त

शाकंभरी नवरात्रि- शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022 को
शाकंभरी नवरात्रि का प्रारंभ, 29 दिसंबर, 2022, दिन गुरुवार को पौष शुक्ल अष्टमी तिथि 07.17 शाम से शुरू।

पौष अष्टमी तिथि की समाप्ति- 30 दिसंबर 2022 को 06.33 शाम ।

शाकंभरी नवरात्रि उदयातिथि के अनुसार शुक्रवार 30 दिसंबर 2022 को मनाई जाएगी।


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शाकंभरी पूर्णिमा/शाकम्भरी जयंती:
6 जनवरी 2023, शुक्रवार

– शाकंभरी नवरात्रि के दिन से यानि पौष शुक्ल अष्टमी के दिन से पूर्णिमा तक देवी की आराधना करें।
– अष्टमी तिथि के प्रातः जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
– अब पूजा स्थल को साफ-स्वच्छ करके पूजन प्रारंभ करें।
– प्रसाद के लिए मिश्री, मेवा, हलवा, पूरी, फल, शाक-सब्जियां आदि एकत्रित करके धोकर रख लें।
– सर्वप्रथम श्री गणेश का पूजन करें, तत्पश्चात माता शाकंभरी देवी का ध्यान करें।
– एक लकड़ी की चौकी लेकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और मां की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें।
-पूजन के पहले माता के चारों ओर ताजे फल और मौसमी सब्जियां रख दें।
– अब उन पर गंगा जल छिड़के तथा शाकंभरी माता की पूजा करें।
– शाकंभरी देवी की कथा, चालीसा, स्तुति आदि का वाचन करें।
– पूजा के पश्चात आरती करें। देवी के मंत्रों का जाप करें। – माता को सभी प्रसाद चढ़ाकर सच्चे मन से प्रार्थना करें।

शाकंभरी नवरात्रि के दिनों में आप मां दुर्गा की आराधना तथा निम्न मंत्रों का जाप करके सुखपूर्वक जीवन बिता सकते हैं। अगर आप भी अपने जीवन को धन-धान्य और ऐश्वर्य से परिपूर्ण करना चाहते हैं तो नवरात्रि के दिनों में नीचे लिखे मंत्रों का प्रयोग करके शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। अगर नौ दिन साधना संभव नहीं हो तो घबराने की कोई बात नहीं, सिर्फ, शाकंभरी जयंती के दिन 108 बार इन मंत्रों का जाप अवश करें।

देवी शाकंभरी मंत्र

मां देवी शाकंभरी का यह मंत्र प्रसिद्ध है, जो उनके स्वरूप को दर्शाता है- ‘

– शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना ।
मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।’
– ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यः सुतान्वितः ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ।।’ ‘
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।’
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नमः ।।’

शाकंभरी नवरात्रि के दिनों में नित्य 1 माला मंत्र जाप करें। हवन सामग्री में तिल, जौ, अक्षत, घृत, मधु, ईख, बिल्व पत्र, शकर, पंचमेवा, इलायची, समिधा, आम, बेल या जो उपलब्ध हो आदि लेकर हवन करें।
इन मंत्रों का अनुष्ठान 10 हजार या 1.25 लाख जप करके
दशांस हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन अवश्य कराएं।

शाकंभरी देवी की पौराणिक कथा:

मां शाकंभरी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया। इस तरह करीब सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे लोग मर रहे थे। जीवन खत्म हो रहा था उस दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे।

तब आदिशक्ति मां दुर्गा का रूप मां शाकंभरी देवी में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां शाकंभरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार शाकुम्भरा (शाकंभरी) देवी ने 100 वर्षो तक तप किया था और महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था। ऐसी निर्जीव जगह जहां पर 100 वर्ष तक पानी भी नहीं था, वहां पर पेड़-पौधे उत्पन्न हो गए। यहां पर साधु-संत माता का चमत्कार देखने के लिए आए और उन्हें शाकाहारी भोजन दिया गया। इसका तात्पर्य यह था कि माता केवल शाकाहारी भोजन का भोग ग्रहण करती हैं और इस घटना के बाद से माता का नाम ‘शाकंभरी माता’ पड़ा।


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  • Author: Admin Editor MBC

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