जानिए क्या है सूर्य के सात घोड़ों का रहस्य, क्या है इनके महत्व ?
कूर्म पुराण के अनुसार सूर्यदेव सभी ग्रहों के राजा हैं और इनके रथ में जुते हुए सात घोड़े अलग-अलग ग्रहों को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार रहते हैं। ये सात घोड़े क्या हैं और इनका क्या है महत्व, इस संबंध में विभिन्न पुराणों में अनेक मत दिए हुए हैं। कूर्म पुराण के अनुसार सूर्यदेव सभी ग्रहों के राजा हैं और इनके रथ में जुते हुए सात घोड़े अलग-अलग ग्रहों को ऊर्जा प्रदान करते हैं। इन घोड़ों को रश्मियां कहा जाता है। अर्थात् सूर्य की सात रश्मियां हुई जो विभिन्न ग्रहों को ऊर्जा और उष्मा प्रदान करते हैं। वायु पुराण में भी यह बात कही गई है कि सूर्य की सात रश्मियां ग्रहों तथा रत्नों का पोषण करती हैं। ये सात रश्मियां हैं- सुषुम्ना, हरिकेश, विश्वकर्मा, विश्वश्रवा, संयद्वसु, अर्वाग्वसु तथा स्वराट। इनमें से जो प्रथम सुषुम्ना नामक रश्मि है उससे सूर्य स्वयं ऊर्जा प्राप्त करता है। इस किरण के कारण ही सूर्य ऊर्जा का अखंड स्रोत है।
सुषुम्ना :
यह सूर्य की रक्त वर्ण की रश्मि है। सूर्य इसी से ऊर्जा प्राप्त करता है इसलिए सूर्य के रश्मिपुंज में 80 प्रतिशत प्रमाण केवल रक्तवर्णी रश्मियों का होता है। इनसे ताप निकलता है, जिनको व्यक्ति की त्वचा पूरी तरह शोषित कर लेती है। मनुष्य की त्वचा का रंग इन्हीं रश्मियों के कारण होता है।
हरिकेश : सूर्य की हरिकेश नामक रश्मि से चंद्रमा ऊर्जा प्राप्त करता है। इसी किरण से मोती रत्न का निर्माण हुआ है। यह किरण नक्षत्रों की उत्पत्ति का स्थान भी है। इसीलिए चंद्रमा संपूर्ण 27 नक्षत्रों में भ्रमण करके अपना एक चक्र पूरा करता है। इस रश्मि का स्वभाव शीतल होता है।
संयद्वसु : यह रश्मि मंगल ग्रह का पोषण करती है। इसे प्रवाल या मूंगा ने धारण किया है। इसलिए मूंगा धारण करने से मंगल से संबंधित दोष दूर हो जाते हैं।
विश्वकर्मा : इस रश्मि से बुध ग्रह ऊर्जा प्राप्त करता है। इसका रंग हरा है। यह रंग नेत्र तथा त्वचा के लिए विशेष उपयोगी होता है। रक्त, पित्त, रक्त प्रदर, अर्श आदि रोगों में पन्ना धारण करने से विशेष लाभ होता है। इस रश्मि से मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है। महत्वाकांक्षा बढ़ती है तथा बुद्धि का विकास होता है।
अर्वाग्वसु : सूर्य की इस रश्मि से गुरु की उत्पत्ति मानी गई है। इसकी रश्मियों से गुरु ऊर्जा प्राप्त करता है। इस रश्मि का प्रभाव पुखराज या पुष्पराज नामक रत्न पर होता है। कूर्म पुराण में इस रश्मि को अर्वावसु कहा गया है।
विश्वश्रवा : इस रश्मि से शुक्र का पोषण होता है। यह रश्मि हीरे को ऊर्जा प्रदान करती है। शुक्र की 16 रश्मियां बताई गई हैं।
स्वराट : यह रश्मि शनि का पोषण करती है। कूर्म पुराण में इसे स्वर रश्मि भी कहा गया है। शनि का रत्न नीलम है। यह नीलम को ऊर्जा प्रदान करती है।
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