आज पौष पुत्रदा एकादशी, व्रत का महत्त्व और पढ़िए क्या है कथा
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन संतान प्राप्ति के लिए पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को जीवन भर सुख की प्राप्ति होती है और जीवन उपरांत मोक्ष मिलता है।
व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का माना जाता है। एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन की चंचलता खत्म होती है, धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है। मनोरोग जैसी समस्याएं भी इससे दूर होती हैं। पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पौष मास की एकादशी बड़ी ही फलदायी मानी जाती है। इस उपवास को रखने से संतान संबंधी हर चिंता और समस्या का निवारण हो जाता है। नए साल में पौष पुत्रदा एकादशी 02 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी। मान्यताओं के अनुसार, एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को जीवन भर सुख की प्राप्ति होती है और जीवन उपरांत मोक्ष मिलता है।
पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त
उदयातिथि के अनुसार, पौष पुत्रदा एकादशी नए साल में 02 जनवरी 2023 को ही मनाई जाएगी। पौष पुत्रदा एकादशी की शुरुआत 01 जनवरी 2023 को ratri 10 बजकर 13 मिनट पर होगी और इसका समापन 02 जनवरी 2023 को ratri-10 बजकर 14 मिनट पर होगा। पौष पुत्रदा एकादशी का पारण 03 जनवरी 2023 को सुबह 07 बजकर 30 मिनट से 09 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
पुत्रदा एकादशी की पूजन विधि
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत रखने से एक दिन पहले भक्तों को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। इसके अलावा व्रती महिला या पुरुष को संयमित और ब्रह्मचर्य का भी पालन करना चाहिए। अगले दिन व्रत शुरू करने के लिए सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें, और भगवान विष्णु का ध्यान करें। गंगाजल, तुलसीदल, फूल, पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करें। पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाली महिला या पुरुष निर्जला व्रत करें। यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो शाम को दीपक जलाने के बाद फलाहार कर सकते हैं। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी ब्राह्मण व्यक्ति या किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं, और दान दक्षिणा दें। उसके बाद ही व्रत का पारण करें।
संतान प्राप्ति के लिए करें ये उपाय
1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद पति-पत्नी एक साथ भगवान श्री कृष्ण की उपासना करें। बाल गोपाल को लाल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करें।
2. पति-पत्नी संतान गोपाल मंत्र का जाप करें।
3. मंत्र का जाप करने और पूजा खत्म होने के बाद प्रसाद ग्रहण करें।
4. जरूरतमंदों को दान दक्षिणा दें और भोजन कराएं।
पौष पुत्रदा एकादशी कथा
किसी समय भद्रावती नगर में राजा सुकेतु का राज्य था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। संतान नहीं होने की वजह से दोनों पति-पत्नी दुखी रहते थे। एक दिन राजा और रानी मंत्री को राजपाठ सौंपकर वन को चले गये। इस दौरान उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है। अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिये और वे उसी दिशा में बढ़ते चलें। साधुओं के पास पहुंचने पर उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ही पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व बढ़ने लगा। वे दंपती जो निःसंतान हैं उन्हें श्रद्धा पूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
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