क्या कथा है सिख समुदाय के पर्व लोहड़ी का, जानिए लोहड़ी पर्व की शुभ मुहूर्त, पूजन विधि संग महत्व जानें
लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति के पहले मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से कृषि को समर्पित होता है। ऐसा माना जाता है कि जब फसल अच्छी होती है तब यह पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो ये पूरे देश में सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है, लेकिन सिख समुदाय इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
लोहड़ी 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य देव 14 जनवरी को रात्रि 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करने वाले हैं इसलिए इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। वहीं लोहड़ी का पर्व इस साल 14 जनवरी, शनिवार को मनाया जाएगा।
लोहड़ी का शुभ मुहूर्त रात 8 बजकर 57 मिनट पर है। इस मुहूर्त में यदि आप अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं और उसके चारों ओर फेरे लेते हैं तो आपके लिए शुभ होगा। लोहड़ी मुख्य रूप से नई फसल के तैयार होने की मनाया जाता है।
लोहड़ी का महत्व
लोहड़ी का महत्व इसलिए बहुत ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि यह नई फसल के तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी की अग्नि से सर्दियों का असर कम होने लगता है। लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं।
लोहड़ी का पर्व उन घरों के लिए और ज्यादा ख़ास हो जाता है जहां नई दुल्हन आई होती है या फिर बच्चा पैदा होता है। उन घरों में लोहड़ी पूरे परिवार के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि लोहड़ी की अग्नि के चारों ओर फेरे लगाने से समस्त पापों से मुक्ति मिल सकती है। इस दिन से खेतों में अनाज लहलहाने लगते हैं और मौसम अनुकूल होने लगता है। इस दिन पंजाबी लोग नये वस्त्र पहनकर और सज-धजकर ढोल नगाड़ों के साथ लोक नृत्य, भांगड़ा करते हैं और महिलाएं लोक गीत गाती हैं।
लोहड़ी की पूजा विधि
लोहड़ी के पर्व में घर के बाहर या फिर खुली जगह पर आग जलाई जाती है और इस पवित्र अग्नि की परिक्रमा करने के साथ उसमें तिल, गजक, पॉपकॉर्न, मूंगफली आदि अर्पित किए जाते हैं। इस पर्व में विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं जिनमें गजक, मूंगफली, गुड़ आदि जरूर शामिल किया जाता है।
लोहड़ी के पर्व में एक स्थान पर लकड़ियों को इकठ्ठा करके अग्नि दी जाती है और इसके बाद सभी परिवार के लोग अग्नि के चारों ओर परिक्रमा लगाते हैं। परिक्रमा लगाते हुए सुख समृद्धि का आशीष मांगा जाता है। लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं और अपनी पुरानी दुश्मनी को भूलकर एक दूसरे को गले लगाते हैं। इस दिन खासतौर पर रेवड़ी, गजक, पॉप कॉर्न आदि का सेवन किया जाता है।
लोहड़ी की कथा
लोहड़ी की कथा सुंदरी नामक एक कन्या तथा दुल्ला भट्टी नामक एक योद्धा से जुड़ी हुई है। इसकी कथा के अनुसार गंजीबार क्षेत्र में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी सुंदरी नामक एक कन्या थी जो अपने नाम की ही तरह बहुत सुंदर थी।
वह इतनी रूपवान थी कि उसके रूप, यौवन व सौंदर्य की चर्चा गली-गली में होने लगी । धीरे-धीरे उसकी सुंदरता के चर्चे गंजीबार के राजा तक पहुंचे। राजा उसकी सुंदरता का बखान सुनकर सुंदरी पर मोहित हो गया और उसने सुंदरी को से विवाह का मन बना लिया।
गंजीबार के राजा ने सुंदरी के पिता को संदेश भेजा कि वह अपनी बेटी को उनके पास भेज दे, इसके बदले में उसे अपार धन-दौलत दी जाएगी। राजा का संदेश सुनकर ब्राह्मण घबरा गया। वह अपनी बेटी को राजा के पास नहीं भेजना चाहता था और इसलिए उसने उसी गांव के योद्धा दुल्ला भट्टी की मदद ली और उसे विस्तार से सारी बात बताई।
दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की व्यथा सुन उसे सांत्वना दी और रात को खुद एक योग्य ब्राह्मण लड़के की खोज में निकल पड़ा। दुल्ला भट्टी ने उसी रात एक योग्य ब्राह्मण लड़के की तलाश कर सुंदरी को अपनी ही बेटी मानकर अग्नि को साक्षी मानते हुए उसका कन्यादान अपने हाथों से किया और ब्राह्मण युवक के साथ सुंदरी का रात में ही विवाह कर दिया। उस समय दुल्ला-भट्टी के पास बेटी सुंदरी को देने के लिए कुछ भी न था इसलिए उसने तिल व शक्कर देकर ही ब्राह्मण युवक के हाथ में सुंदरी का हाथ देकर उसे ससुराल विदा कर दिया।
गंजीबार के राजा को इस बात का पता लगा तो वह बहुत नाराज हुआ और उसने दुल्ला भट्टी को ख़त्म करने का आदेश दिया। राजा का आदेश मिलते ही सेना दुल्ला भट्टी को ख़त्म करने पहुंची लेकिन दुल्ला-भट्टी और उसके साथियों ने अपनी पूरी ताकत लगा कर राजा की सेना को हरा दिया।
दुल्ला भट्टी के हाथों शाही सेना की करारी शिकस्त होने की खुशी में गंजीबार में लोगों ने अलाव जलाए और दुल्ला-भट्टी की प्रशंसा में गीत गाए भंगड़ा किया। तभी से लोहड़ी में दुल्ला भट्टी के गानों की प्रथा है।
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