कथा का तीसरा दिन : सत्संग ही मनुष्य को सतपथ पर चलना सिखाता है
श्री भक्तमाल कथा का तीसरा दिन
श्रीराम मन्दिर गुरूधाम में जगद्गुरू श्री रामानन्दाचार्य जी के 723 वें जयन्ती के उपलक्ष्य में समायोजित श्रीमद् भक्तमाल कथा के तृतीय दिवस में जगद्गुरू अनन्तानन्द द्वाराचार्य स्वामी डॉ. रामकमलदास वेदान्ती महाराज ने भक्तों की अपार महिमा को गाया। उन्होंने कहा कि भक्तमाल के रचयिता गोस्वामी नाभा दास जी की विलक्षण भगवद् निष्ठापूर्ण रचना किया। व्याख्या करते हुए कहा कि सत्संग ही मनुष्य को सतपथ पर चलना सिखाता है।
मनुष्य को चाहिए वह बचपन से हि श्रेष्ठ सत्पुरूषों की संगति में रहें। कुसंगति में पड़कर अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवियों की भी मति भ्रष्ट हो जाति है। महर्षि नारद जी ने पूर्व जन्म की कथा श्रीमद् भागवत में सुनाते हुए कहा है कि वे अपने पिछले जन्म में एक दासी के पुत्र थे। संयोगवष उनकी माँ को संतों की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ संतों की संगति में रहने के कारण नारद जी के जीवन में भी अद्भुत प्रभाव पड़ा और वे भगवान के ऐसे भक्त हुए कि उनकी कीर्ति सम्पूर्ण विश्व में छाई हुई है। भक्तमाल के प्रारंभ में यह बात बताई गई है कि संत की अथवा भक्त की कोई जाति पाति नहीं होती जिस मनुष्य के अंदर लोक कल्याण की भावना व परोपकार की निष्ठा है।
वह मनुष्य किसी भी देश व जाति में पैदा हुआ हो उसे पूज्यनीय माना जाता है। जगद्गुरू रामानन्दाचार्य जी के शिष्य सद्गुरू कबीर साहेब व संत शिरोमणि रविदास जी पिछड़ी जातियों में जन्में थे लेकिन आज बड़े-बड़े संत व विद्वान उनका हृदय से आदर करते है। व्यक्ति जाति से नहीं आचरण से पूज्य बनता है। भक्तमाल में ऐसे भी भक्तों का चरित्र है जो कसाई और हिंसक कार्यों में लिप्त थे वे भी संतों के दर्षन मात्र से दया करूणा व सौहार्ध के भण्डार बन गए। तेरहवीं सदी में प्रादुर्भूत हुए रामानन्दाचार्य जी ने देष व धर्म को सुदृढ़ एवं संगठित करने हेतु हिन्दू धर्म में प्रचलित सभी जातियों के लोगों को दीक्षा देकर संत बनाया जो आज दुनिया में प्रसिद्ध है। हमें भी कीर्तिवान बनने के लिए श्रेष्ठ आचरण व भक्ति को अपनाना चाहिए। कथा में खरादी समाज काश्मीरीगंज द्वारा विश्व प्रसिद्ध काष्ठ खिलौने का संग्रह व्यास जी को भेंट की। व्यास पीठ का पूजन व आरती जानकी वर्मा, सुरेश मिश्रा, अखिलेश सिंह व नीतु सिंह ने की। कथा में काफी संख्या में महिला पुरुष भक्त उपस्थित रहे।
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