एक भविष्यवाणी…क्या खंड खंड हो जाएगा उत्तराखंड, जानिए जोशी मठ से जुड़ी अनसुनी बातें
– जोशीमठ भू धंसाव, विकास से होगा चारों धामों का विनाश, खंड खंड हो जाएगा उत्तराखंड
जोशी मठ में तेजी से भू धंसाव हो रहा है। बताया जा रहा है कि जोशीमठ नगर में कुल 603 भवनों में दरारें मिली है। आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 33 व 34 के अन्तर्गत नगर क्षेत्र के अत्यधिक भू-धसाव वाले क्षेत्रों को असुरक्षित घोषित कर दिया गया है। बताया जा रहा है। कि उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्ण प्रयाग प्रोजेक्ट, रेलवे प्रोजेक्ट, टिहरी बांध परियोजना आदि कई विकास कार्यों के कारण पहाड़ दरक रहे हैं।
देवात्म हिमालय
उत्तराखंड में छोटा चार धाम की यात्रा होती है। ये धाम है बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री पुराणों के अनुसार यह संपूर्ण क्षेत्र देवात्म हिमालय के अंतर्गत आता है। यहां पर सूक्ष्म रूप में देवता निवास करते हैं और अनगिनत ऋषि मुनि तपस्यारत है। यह संपूर्ण क्षेत्र तपोभूमि और पवित्र तीर्थ स्थल है, पर्यटन स्थल नहीं। यहां की प्रकृति से छेड़छाड़ करने का अर्थ है कि संपूर्ण हिमालय को खतरे में डालना भूकंपों को आमंत्रित करना।
विनाश की ओर कदम
विकास के नाम पर यहां जो कुछ भी हो रहा है वह अंततः विनाश ही करेगा। उसका कारण यह है कि हिमालय के पहाड़ पक्के पहाड़ नहीं है। यह धरती की आयु और अन्य पहाड़ों के मान से सबसे नए पहाड़ है। परंपरा अनुसार यहां संपूर्ण क्षेत्र में लोगों के जोर से बोलने पर भी प्रतिबंध रहा है ऐसे में डायनामाइड लगाकर सुरंग खोदना और पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना तो घोर अपराध की श्रेणी में आता है। केदारनाथ और बद्रीनाथ में खूब विकास किया जा रहा है जबकि केदारनाथ की बाढ़ ने एक झटके में सारे विकास कार्य ध्वस्त कर दिए थे।
शीतकाल में जोशीमठ में रहते हैं बद्रीनाथजी
हिन्दुओं के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का निवास स्थल है। यह भारत के उत्तरांचल राज्य में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। यहां भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है और यह संपूर्ण क्षेत्र प्राकृति की गोद में स्थित है। बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। मंदिर में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति भी है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ में ले जाई जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।
शिवजी का विश्राम स्थल केदारनाथ
केदारनाथ को जहां भगवान शंकर का आराम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। शिवजी की तपस्या में विघ्न डालने के लिए यहां पर हर साल लाखों यात्री एकात्रित होते हैं। स्कंद पुराण में भगवान शंकर, माता पार्वती से कहते हैं, हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा | चिरनिवास होने के कारण भूस्वर्ग के समान है।
नर और नारायण: केदार घाटी में दो पहाड़
विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। वर्तमान बद्रीनाथ के पहले आदि बद्रीनाथ तीर्थ स्थल हुआ करता था।
लुप्त हो जाएंगे चारों धाम पुराण
भूकंप, जलप्रलयऔर सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थस्थल की रोचक कहानी। मानव की गतिविधियां बढ़ने से यहां पाप भी बढ़े और इसके चलते देवता यह स्थान छोड़ देंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे। यह भी मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। जिस दिन यह हाथ लुप्त हो जाएगा उस दिन ब्रद्री और केदारनाथ तीर्थ स्थल भी लुप्त होना प्रारंभ हो जाएंगे।
बचेगा मात्र एक स्थान
कहते हैं कि भविष्य में जब केदारनाथ और बद्रीनाथ लुप्त हो जाएंगे भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। यह स्थान चमोली में जोशीमठ के पास सुभेन तपोवन में स्थित है।
जोशीमठ भारत-चीन सीमा के नजदीक
यह पहाड़ के एक ढलान पर बसा हुआ है। जोशीमठ के सामने हाथी पर्वत है। इसके सामने से घाटियों से होता हुआ एक रास्ता बद्रीनाथ के लिए जाता है और दाई ओर से फूलों की घाटी और हेमकुंड के लिए रास्ता जाता है। साल 1939 में एक वैज्ञानिक ने यह पता लगाया था कि जोशीमठ एक लैंडस्लाइड पर बसा हुआ है। वह लैंडस्लाइड बहुत अस्थिर है। यहां पर किसी भी प्रकार के विकास कार्य करना या बसावट करना बहुत ही खतरनाक माना गया था। अब यहां पर पहाड़ों को खोदकर सड़कों का जाल बिछा दिया गया है। अंधाधुंध तरीके से वृक्ष काटना और भूमि के कटाव के कारण अब यह क्षेत्र भू धंसाव का केंद्र बन गया है। जोशीमठ कई पावर प्लांट लगाए जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम हुआ है और हो रहा है।
जोशीमठ के नीचे से एक लंबी सुरंग बनाई गई है। तपोवन से हेलंग तक। बीच में जोशी मठ और औली है। यह सुरंग करीब एक किलोमीटर की निचाई में बनाई गई है। साल 2009 में हेलंग से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर इस सुरंग में एक टनल बोरिंग मशीन फंस गई थी. इस मशीन ने जमीन के नीचे एक पानी के स्रोत को पंचर कर दिया था जिसके चलते एक माह तक पानी रिसता रहा। इसने भीतर की भूमि में दरारें कर दी है। सुरंग में जो पानी घुसा था क्या वो अब रिसकर जोशीमठ में निकल रहा है।
सुरंग के कारण प्राकृतिक दरारों के सक्रिय होने की संभावना भी बढ़ गई है। जोशीमठ के ठीक नीचे से और औली के पीछे से भूमि के अंदर एक बहुत बड़ी दरार (मैन सेंट्रल थ्रस्ट- MCT) गुजरती है। यह हेलंग से लेकर तपोवन तक जाती है। इसके पास दो छोटी दरारें वैक्रता थ्रस्ट (VT) और पिंडारी थ्रस्ट (PT) भी गुजर रही हैं। यह दरारें हिमालय पर्वत के बनने के दौरान बनी थीं। इन्हीं के उपर यह संपूर्ण क्षेत्र है।
खंड खंड हो जाएगा उत्तराखंड :
जोशीमठ से पहले एक सड़क बद्रीनाथ और हेमकुंड की ओर जा रही थी, लेकिन अब जोशीमठ को बायपास करके नीचे से एक सड़क बनाई जा रही है। इसके लिए पहाड़ की तलहटी को काटा जा रहा है, डायनामाइड लगाकर विस्फोट किए जा रहे हैं, जिससे चट्टान कमजोर होती जा रही है। ऐसा सिर्फ जोशीमठ के आसपास ही नहीं हो रहा है संपूर्ण उत्तरांख में हो रहा है। चाहे वह रेलवे प्रोजेक्ट हो या सडक परियोजना विकास करने वालों को यह समझना होगा कि संपूर्ण क्षेत्र में एक पहाड़ दूसरे पहाड़ से जुड़ा हुआ है। एक के अस्तित्व को खतरा हुआ तो सभी पहाड़ अस्थिर हो जाएंगे और अब तो हो भी गए है। इसे रोकना मुश्किल है। जिसने भी द एंड ऑफ वर्ल्ड 2012 देखी होगी वह समझ सकता है कि भविष्य में उत्तराखंड में क्या होने वाला है।
दूसरे शहरों पऱ भी खतरा
भूवैज्ञानिक अध्ययन में भी 2016 में कहा गया था कि जोशीमठ अकेला शहर नहीं है जो डूबने के कगार पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तरकाशी, नैनीताल पर भी डूबने का खतरा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है। जोशीमठ की तरह हिमालय की तलहटी में कई अन्य कस्बों में भू-धंसाव का खतरा है। जोशीमठ के अलावा उत्तराखंड के कई और शहर पर खतरे की घंटी बज रही है। जोशीमठ के ऊपर संकट को लेकर वैज्ञानिको ने पहले भी चेताया था। लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया और न भविष्य में दिया जाएगा, इसलिए अब भविष्य बद्री की तैयार कर लें।
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विकास के नाम पर जो विनाशलीला उत्तराखंड में हुई है उसी का दुष्परिणाम आज वहाँ की जनता भोग रही है। आखिर हम कब समझेंगे कि ऐसे सुरम्य स्थानों में प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ कितना भयावह हो सकता है ?
अभी ज्यादा वर्ष नहीं बीते जब अलकनंदा की गर्जना ने कितनी जिन्दगियों को निगल लिया था?
अब भी समय है, हमें इसपर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है अन्यथा अनर्थ होने से स्वयं शिवजी भी नहीं रोक पाएंगे।