Home 2023 रथसप्तमी विशेष : कुष्ट रोग से बचने के लिए करिये रथसप्तमी व्रत और जानिए कैसे यह तिथि जुड़ा है सूर्

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रथसप्तमी विशेष : कुष्ट रोग से बचने के लिए करिये रथसप्तमी व्रत और जानिए कैसे यह तिथि जुड़ा है सूर्य का जन्म की कथा से

मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि पहले संपूर्ण विश्व में अंधेरा था। उस अंधकार में कमलयोनि से प्रकट हुए और उनके मुख से पहले शब्द का उच्चारण हुआ यह सूर्य के तेज का ही सूक्ष्म रूप था। इसके ब्रह्माजी के मुख से चारों वेद प्रकट हुए। वेदओ के तेज में समा गए। दिखाई न देने वाला सूर्य इसी ओम का रूप है। लेकिन सूर्य का यह तेज इतना अधिक था कि सृष्टि के भरम होने का डर था, इसलिए ब्रह्माजी की प्रार्थना पर सूर्य देव ने अपने तेज को कम कर लिया। सूर्य के प्रकट होने पर संपूर्ण विश्व का अंधकार मिटा और सृष्टि में जीवन का संचार हुआ। ज्योतिष में सूर्य को नवग्रहों का राजा और आत्मा का कारक माना गया है। व्यवस्था के संचालन में इसे राजा यानि राष्ट्र प्रमुख और उच्च दर्शाती है। अधिकार बंधों के निर्वह में इसे पिता माना गया है।

पहली कथा

सूर्य के आदित्य नाम होने के पीछे एक कथा है। सृष्टि उत्पत्ति के समय कश्यप ऋषिकी पत्नी अदिति ने कठोर तप करके सूर्य भगवान को प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि ये उनके पुत्र रूप में जन्म लें। सूर्य ने उन्हें यह वरदान दे दिया और अपनी सात किरणों में से एक ‘सुषुम्ना’ किरण द्वारा उनके गर्भ में प्रवेश किया। अदिति के गर्भ से जब सूर्य का जन्म हुआ, उस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी थी। अदिति के गर्भ से जन्म लेने कारण सूर्य का नाम ‘आदित्य’ हुआ। सूर्य के रथ में सात घोड़े होने के कारण इसे रथ सप्तमी’ कहा जाता है। इसके अलावा इस तिथि को ‘आरोग्य सप्तमी’, ‘माघ सप्तमी’, ‘अचला सप्तमी’, ‘विधान सप्तमी’ आदि नाम से भी जाना जाता है। सूर्य के रथ में ‘गायत्री’, ‘प्राति’, ‘उषिनक ‘, ‘जगती’, ‘त्रिस्तप’, ‘अनुस्तप’ और “पंक्ति’ नाम के सात घोड़े हैं। ये सातों घोड़े सप्ताह के सात दिनों, सात किरणों के प्रतीक है। सूर्य के रथ का पहिया संवत्सर वर्ष और उसमें लगी बारह तीलियां बारह महीनों को दर्शाती है।

दूसरी कथा

रथसप्तमी से जुड़ी एक अन्य कथा भी है। कहते हैं, जब सूर्यदेव को खड़े-खड़े काफी लंबा समय बीत गया तो उनके पांव दुखने लगे तब उन्होंने भगवान विष्णु के सामने अपनी समस्या रखी। विष्णुजी ने सूर्य देव की समस्या के समाधान के रूप में उन्हें हीरे जड़ित सारथि अरुण देव सहित एक स्वर्ण रच दिया। जिस दिन यह रथ सूर्य देव को मिला, उस दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी श्री इस दिन रथ पर विराजमान होने के कारण इसे ‘रथ सप्तमी’ कहा गया।

इस दिन गंगा स्नान करके सूर्य की पूजा करने और सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान करने से सूर्य संबंधी दोष दूर होते है। यही नहीं इस दिन सूर्य के साथ-साथ उनके रथ में जुते सातों घोड़ों की भी पूजा की जाती है। रथ सप्तमी के व्रत और सूर्य उपासना से ही कृष्ण के पुत्र साम्ब का कुष्ठ रोग ठीक हुआ था, जो उन्हें स्वयं कृष्ण के श्राप के कारण हुआ था।


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Author: Admin Editor MBC

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