पत्थर रूप में ही क्यों शिंगणापुर में प्रकट हुए शनि पढ़िए पुरी कहानी
हिन्दू धर्म में शनिदेव को कर्मफल दाता के रूप में वर्णित किया गया है। शनि देव का स्थान ग्रहों में भी है। जहां हर देवी-देवता या ग्रह मूर्ति रूप में पूजे जाते हैं तो वहीं, शनि देव काले पत्थर के रूप में शिंगणापुर में विराजमान है।
शनिदेव पहली बार शिंगणापुर में एक काले पत्थर के रूप में प्रकट हुए थे और तभी से उनकी पूजा का विधान इसी रूप में आरंभ हुआ।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार श्रावण माह में भारी वर्षा के कारण जल स्तर बहुत बढ़ गया था और जगह-जगह नदियां उफान पर थीं। नदी के बहाव में बहकर एक दिन एक बड़ा सा काला पत्थर शिंगणापुर के तट पर जा पहुंचा।
इतना बड़ा पत्थर देख शिंगणापुर के बच्चों ने उसके ऊपर चढ़कर खेलना शुरू कर दिया। खेल-खेल में जब एक बच्चे ने काली शिला पर दूसरा पत्थर मारा तब शिला से आवाज आई और रक्त बहने लगा। यह देख बच्चे डर गए।
सभी बच्चे भागे-भागे अपने परिवार के पास पहुंचे और उन्हें जाकर पूरी बात बताई। बच्चों की बात सुन सभी गांव वाले शिला को देखने के लिए तट पर गए लेकिन उन्हें कुछ भी विचित्र नहीं दिखा और न ही उस शिला को लेकर उन्हें कुछ समझ आया।
जब गांव के सभी लोग सो गए तब शनि देव ने हर एक ग्राम वासी के सपने में जाकर उनके शिला में वहां होने की बात बताई। यह सुन सभी लोग अगले दिन संपूर्ण पूजन सामग्री और बैलगाड़ी के साथ शिला के पास पहुंचे।
इसके बाद बैलगाड़ी में रखकर शिला को गांव वालों ने पूर्ण विधि-विधान के साथ स्थापित किया और तभी से आजतक शिला के रूप में ही शनि देव शिंगणापुर में विराजमान हैं। माना जाता है कि शनि देव आज भी उस गांव की रक्षा करते हैं।
मान्यता है कि शनि देव शिला रूप में इसलिए प्रकट हुए थे ताकि उनकी पूजा का अधिकार सभी को मिल सके। मूर्ति रूप में पूजा-अभिषेक आदि करना महिलाओं के लिए बाध्य हो जाता है। शिला रूप में तेल अर्पित करना और पूजा-पाठ आदि सरल है।
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