‘मन चंगा तो कठौती में गंगा.. ‘ कहने वाले रविदास कौन थे?
संत रविदास का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था, बावजूद इसके वो कभी भी जात-पात का अंतर नहीं करते थे। उनकी नजर में सारे इंसान बराबर थे।
हर साल की माघ मास की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती मनाई जाती है। इस साल ये पावन दिन 5 फरवरी यानी कि रविवार को पड़ रहा है, रविवार के दिन जंयती होने की वजह से इसका महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि संत रविदास का जन्म रविवार को ही हुआ था और इसी वजह से उनका नाम रविदास पड़ा था। उनकी वाणी और उनके कथन हमेशा लोगों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने जात-पात से ऊपर उठकर लोगों को मन की शुद्दता से लोगों को रूबरू करवाया था। माना जाता है कि उनका जन्म 1377 को बनारस, उत्तर प्रदेश में माघ पूर्णिमा को हुआ था लेकिन उनके जन्म को लेकर लोगों में काफी मतभेद भी हैं।
संत रविदास ने कहा-भक्ति में ही शक्ति है
संत रविदास का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था, बावजूद इसके वो कभी भी जात-पात का अंतर नहीं करते थे। उनकी नजर में सारे इंसान बराबर थे क्योंकि उनका बनाने वाला एक ही और वो है ईश्वर, जो कि आपके और हमारे अंदर है। उन्होंने हमेशा कहा कि अगर आपका मन शुद्ध नहीं तो आप कभी ईश्वर के करीब नहीं पहुंच सकते हैं, भक्ति में ही शक्ति बताने वाले संत रविदास ने कहा था कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’, इसलिए इंसान को अपने अंदर सबसे पहले सारी बुराईयों का अंत करना चाहिए, जिस दिन वो ये समझ जाएगा उस दिन वो ईश्वर के निकट पहुंच जाएगा। उनकी भक्ति से ही प्रभावित मीराबाई उनकी शिष्या बनी थीं। संत रविदास और संत कबीरादस आपस में मित्र कहे जाते हैं और दोनों ही एक-दूसरे के विचारों से काफी प्रभावित थे। जो लोग संत रविदास के अनुयायी हैं वो इस दिन भजन-कीर्तन का भव्य कार्यक्रम करते हैं और संत रविदास के बताए सिद्धांतों को याद करते हैं।
ये हैं संत रविदास की कुछ लोकप्रिय चौपाइयां, जो लोगों का सच्चा मार्ग दिखाती हैं…
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास।
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।
मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।
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