भगवान विष्णु, राम और कृष्ण की तरह क्यों नहीं लगता महादेव के आगे ‘श्री’
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु और उनके अवतारों के आगे ‘श्री’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह श्री न सिर्फ भगवान को संबोधित करने के लिए लगाया जाता है बल्कि उनके प्रति हमारे सम्मान को भी दर्शाता है।
इसी कड़ी में एक सवाल यह उठता है कि आखिर श्री कृष्ण, श्री विष्णु, श्री राम आदि की तरह भगवान शिव के आगे श्री क्यों नहीं लगता है।
श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। माता लक्ष्मी का एक नाम श्री भी है। भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसे में भगवान विष्णु के आगे श्री लगाने का अर्थ है विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का वास।
ठीक ऐसे ही भगवान विष्णु के अवतार हैं श्री राम और श्री कृष्ण और हर एक अवतार में माता लक्ष्मी ने भी भगवान विष्णु के साथ-साथ अवतार लिया है। जैसे कि राम के साथ सीता और कृष्ण के साथ रुक्मणि।
इसी कारण से राम जी और कृष्ण जी के आगे भी श्री का उपयोग किया जाता है। माना जाता है कि अगर राधा रानी के आगे श्री राधा कहकर उन्हें पुकारा जाए तो इसका अर्थ है राधा रानी और कृष्ण का साथ में स्मरण।a
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब-जब पृथ्वी पर भगवान विष्णु ने अवतार लिया है तब-तब माता लक्ष्मी भी उनके साथ अवतरित हुई हैं। हालांकि ज्यादातर लोगों को सिर्फ श्री राम और श्री कृष्ण के साथ ही माता लक्ष्मी के अवतार लेने के बारे में पता है।
बता दें कि, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार, वाराह अवतार आदि में भी माता लक्ष्मी अवतरित हुईं थीं। भगवान वराह के साथ माता वाराही, भगवान नृसिंह के साथ माता नारसिंही, भगवान वामन के साथ माता पद्मा और भगवान परशुराम के साथ माता धारिणी।
जब हम भगवान विष्णु और उनके किसी भी अवतार के नाम के आगे श्री लगाते हैं तो इसका मतलब होता है माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को एक मानकर उनकी पूजा करना या उन्हें स्मरण करना।
वहीं, भगवान शिव के आगे श्री नहीं लगाया जाता है। जिसका कारण यह है कि भगवान शिव के साथ माता लक्ष्मी नहीं बल्कि माता पार्वती पूजी जाती हैं। भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती हैं।
ऐसे में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए श्री के बजाय उनके अर्धनारेश्वर रूप को स्मरण करते हुए उनके नाम के साथ उन्हें पुकारा जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान शिव और माता पार्वती को गौरीशंकर कहकर भी एक साथ स्मरण किया जा सकता है।
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