महाशिवरात्रि : पढ़िए क्यों ख़ास होता हैं महाशिवरात्रि, क्या हैं पंचवक्त्र पुजन और इस महा पर्व से जुड़ी पौराणिक सत्य
“महाशिवरात्रि का उत्सव मनाने के पीछे सिर्फ़ एक ही उद्देश्य है- आपके शरीर में मौजूद हर एक कण को जीवन्त करना। उत्सव के माध्यम से आपको यह याद दिलाया जाता है सभी तरह के संघर्ष का त्याग कर, सत्य, सुंदरता, शांति और परोपकार के पथ पर चलें – जो की शिव के ही गुण हैं ”।
हिन्दू सनातन धर्म का ये प्रधान उत्सव है। देश के हर गांव शहरमे ये पर्व श्रद्धापूर्ण भाव से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि से जुड़ी अनेक कथाएं बताई जाती है ।
– इसी दिन शिव पार्वती का विवाह हुआ ओर वैराग्यमूर्ति शिवजी की सर्जनात्मक लीला का आरंभ हुवा । इसलिए इस रात्रिपर्व मे शिव शिवा की पूजा उपासना की जाती है।
– ब्रह्मा और विष्णु के सामने प्रथम ज्योतिर्लिंग प्रकट हुवा ओर ब्रह्मा विष्णु ने महादेव की लिंग स्वरूप पूजा की , इसलिए इस महारात्रि मे समस्त संसार शिवपूजा करता है।
– समुद्र मंथन से प्रकट हलाहल विष का महादेव ने पान किया और समस्त संसार की रक्षा की इसलिए आजके दिन शिवलिंग पर भांग का अभिषेक ओर धतूरा पुष्प से पूजा की जाती है ।
– ऐसी अनेक कथाएं इस पर्व के साथ जुड़ी बताई जाती है । सप्तऋषि सहित महान सिद्ध संत आध्यात्मिक उपासना इस महारात्रि की महत्ता समझते थे।
– निराकार ब्रह्म शिव की जब में एक से अनेक बनूँ की कल्पना मात्र से पंच तत्व ( भूमि,जल,अग्नि,वायु,आकाश ) और उनके पंच देव गणपति,शक्ति,सूर्य,विष्णु और रुद्र प्रगट हुवे। इसलिए महाशिव रात्रि की मध्य रात्रि से प्रातः काल तक शिवलिंग पर इस पांचो देवताओ का पंचवक्त्र पूजन किया जाता है। निराकार ब्रह्म शिवके 64 ज्योतिलिंग ( इनमें से 12 ज्योतिर्लिंग दृश्यमान है ) प्रकट हुवे इसलिए सृष्टि आरंभ का ये महापर्व श्रद्धापूर्ण भाव से मनाया जाता है।
पंचवक्त्र पुजन
शिवलिंग पर पंचामृत सहित जलाभिषेक पूजा करके शिवलिंग के पांच मुखों का पूजन करे।
1 तत्पुरुष –
शिवलिंग के पूर्व मुख को तत्पुरुष (सूर्य) कहते है। केशर का त्रिपुंड, गूगलधूप, गलगोटा , सहस्त्रदल पुष्प , क्षीर का प्रसाद , घी का दीपक , पानबीड़ा अर्पण करें और मंत्र ;-
ॐ तत्पुरुषाय नमः
का जाप करे फिर आरती करें।
2 सद्योजात –
शिवलिंग के पश्चिम मुख को सद्योजात (महागणपति) कहते है। रक्तचंदन का त्रिपुंड, चूरमा लड्डू का प्रसाद , घी का दीपक, दशांग धूप , जसवंती पुष्प , पानबीड़ा अर्पण करें और ॐ सद्योजाताय नमः मंत्र के जाप करे और आरती करें।
3 वामदेव–
शिवलिंग के उत्तरमुख को वामदेव (विष्णु) कहते है। हल्दी चंदन का त्रिपुंड,बेसन का पाक , घी का दीपक, सूखड़ चंदन का धूप , कनेर के पीले पुष्प, पान बीड़ा अर्पण कर ओर ॐ श्री वामदेवाय नमः मंत्र जाप करके आरती करें।
4 अघोरेश्वर –
शिवलिंग के दक्षिणमुख को अघोर कहते है। यंहा शिवकी हस्तमुद्रामे बिराजमान शक्ति सहित स्वरूप है। भस्म का त्रिपुंड,उरद पाक का प्रसाद, कमल , चमेली के पुष्प, घी का दीपक , अगरका धुप, पान बीड़ा अर्पण करके
ॐ अघोरेश्वराय नमः मंत्र जा जाप करे और आरती करें।
5 ईशान –
शिवलिंग के ऊर्ध्वमुख को ईशान (महादेव) कहते है। श्वेत चंदन , श्वेत भस्म का त्रिपुंड , दुग्ध का प्रसाद , स्वेत पुष्प, अष्टगंध धुप, पानबीड़ा अर्पण करे ।
ॐ ईशानाय नमः मंत्र का जाप करके आरती करें।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो महाशिवरात्रि की रात बेहद खास होती है। दरअसल इस रात पृथ्वीग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है। यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है। धार्मिक रूप से बात करें तो प्रकृति उस रात मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती है। इसका पूरा लाभ लोगों को मिल सके इसलिए महाशिवरात्रि की रात में जागरण करने व रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने की बात कही गई है।
महाशिवरात्रि के पर्व पर हम शिव जी की उपासना करते हैं। भक्तजन सारी रात जागकर इस शुभ प्रहर में शिवरात्रि का उत्सव मनाते हैं। यज्ञ, वेद मंत्रों के उच्चारण, साधना और ध्यान के माध्यम से वातावरण में दिव्यता की अनुभूति होती है। इन पवित्र क्रियाकलापों के माध्यम से आप स्वयं के साथ और पूरी सृष्टि के साथ एकरस हो जाते हैं।
इसदिन उपवास रखे । संध्या प्रदोषकालमें शिव पूजन करे। रात्रि के चारो प्रहर जागरण करे। शिव मंदिर या घरमे शिव और पार्वती के सायुज्य मंत्र;-
” ॐ ह्रीं नमः शिवाय ”
इस मंत्र का जाप करे। शरीर की ऊर्जा स्वयम ही उर्ध्वगामी होती है इसलिए आसन पर रिड की हड्डी सीधी रहे ऐसे बैठकर मंत्र जाप या ध्यान करे। इस महारात्र मे प्राकृतिक मिल रहा दिव्य ऊर्जा संचय का अमूल्य लाभ अति महत्वपूर्ण है।
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