महाशिवरात्रि : जानिए व्रत जुड़ी कथा, जब शिकारी पर हुई शिव कृपा
महाशिवरात्रि 18 फरवरी कल है। इनकी पूजा करने से इंसान के सारे कष्टों का अंत हो जाता है और घर में सुख-वैभव की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव आशुतोष हैं, भोले भंडारी हैं, वे अनजाने में की गई पूजा तक से प्रसन्न हो जाने वाले देव हैं। इसलिए उनकी कृपा की अनेक कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। शिवरात्रि से जुड़ी भी अनके कथाएं वर्णित हैं। आइए सुनते-पढ़ते हैं सर्वाधिक प्रचलित कथा-
एक कथा के अनुसार-
एक गांव में एक शिकारी रहता था। वह शिकार करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। एक बार उस पर साहूकार का ऋण हो गया। ऋण न चुकाने पर साहूकार ने उसे एक शिव मंदिर के समीप बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। वह समीप के मंदिर में शिव की पूजा, मंत्रोच्चार, कथा आदि देखता और सुनता रहा। संध्या होने पर सेठ ने उसे बुलाया। शिकारी ने अगले दिन ऋण चुकाने का वादा किया तो सेठ ने उसे कैद से मुक्त कर दिया। अगले दिन ऋण चुकाने के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए वह जंगल में गया। वहां एक तालाब के किनारे बेल के वृक्ष पर शिकार करने के लिए उसने मचान बनाया। संयोग से उस पेड़ के नीचे एक पुराना जीर्ण-शीर्ण शिवलिंग था। मचान बनाने में उसके हाथ से अनेक बेल पत्र पेड़ से नीचे शिवलिंग पर गिरे। वह दिनभर से भूखा प्यासा था।
शिकारी ने धनुषबाण उठा लिया
एक पहर व्यतीत होने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने उसे देखकर धनुषबाण उठा लिया। यह देखकर वह हिरणी कातर स्वर में बोली- मैं गर्भवती हूं। मेरा प्रसवकाल समीप ही है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने उपस्थिति हो जाऊंगी। यह सुनकर शिकारी ने उसे छोड़ दिया। कुछ देर बाद एक दूसरी हिरणी उधर से निकली। शिकारी ने फिर धनुष पर बाण चढ़ाया। हिरणी ने निवेदन किया, हे व्याघ्र महोदय! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने पति से मिलन करने पर शीघ्र तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया। रात्रि के अंतिम पहर में एक मृगी अपने बच्चों के साथ निकली। शिकारी ने शिकार हेतु धनुष पर बाण चढ़ाया। वह तीर छोड़ने ही वाला था किवह मृगी बोली- मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ आऊं, तब मुझे मार डालना। मैं आपके बच्चों के नाम पर दया की भीख मांगती हूं। शिकारी को इस पर भी दया आ गई और उसे जाने दिया।
मुझे उनका वियोग न सहना पड़े…
पौ फटने को हुई तो एक तंदुरुस्त हिरण आता दिखाई दिया। शिकारी उसका शिकार करने के लिए तैयार हो गया। हिरण बोला व्याघ्र महोदय यदि तुमने इससे पहले तीन मृगियों तथा उनके बच्चों को मार दिया हो तो मुझे भी मार दीजिए ताकि मुझे उनका वियोग न सहना पड़े। मैं उन तीनों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया हो तो मुझपर भी कुछ समय के लिए कृपा करें। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने आत्मसमर्पण कर दूंगा। मृग की बात सुनकर रात की सारी घटनाएं उसके दिमाग में घूम गई। उसने मृग को सारी बात बता दी। उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से उसमें भगवद्भक्ति का जागरण हो गया। उसने मृग को भी छोड़ दिया।
हृदय मांगलिक भावों से भर गया
भगवान शंकर की कृपा से उसका हृदय मांगलिक भावों से भर गया। अपने अतीत के कर्मो को याद करके वह पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा। थोड़ी देर पर हिरण सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थति हो गया। उसके नेत्रों से अश्रुओं की झड़ी लग गई। उसने हिरण परिवार को वचनबद्धता से मुक्त कर दिया। शिवकृपा से शिकारी का हृदय परिवर्तन हुआ और यह देखकर साहूकार ने भी उसे ऋण से मुक्त कर दिया।
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