क्या आप जानते हैं सारे ज्योतिर्लिंग जमीन तल से नीचे क्यों स्थित हैं, कितने प्रकार के होते हैं शिव लिंग
ऊर्जा का सबसे तीव्र स्रोत होने की वजह से ही ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से व्यक्ति के मन मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना हर शिव भक्त के लिए बहुत फलदायी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आप ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाते हैं तो आपकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
शिवलिंग का पूजन लोग घर में और आस-पास के मंदिरों में भी करते हैं, लेकिन यदि आप ज्योतिर्लिंग जाकर शिवलिंग के दर्शन करते हैं तो उनका अलग ही महत्व है। हमारे देश में मुख्य रूप से 12 ज्योतिर्लिंग हैं और उनकी अलग मान्यताएं हैं।
शास्त्रों के अनुसार शंकर जी को ब्रह्माण्ड के पिता के रूप में पूजा जाता है इसलिए पहले इनकी मूर्ति लिंग के रूप में हुआ करती थी। यह अधिकतर पंचमुखी होती है। पूर्व की ओर मुख वाले विष्णु कहलाते हैं, पश्चिम की ओर वाले ब्रह्मा कहलाते हैं, जो दक्षिण की ओर शिव हैं और जो उत्तर की ओर हैं रुद्र।
पांचवां मुख ऊपर की ओर इशारा करता है, अर्थात आध्यात्मिक प्रगति की ओर जाता है। जब हम बात ज्योतिर्लिंग की करते हैं तब ये जिन स्थानों पर भी स्थापित हैं जमीन से थोड़े नीचे की तरफ स्थापित हैं। इन स्थानों पर भक्तों की झुककर जलाभिषेक करना पड़ता है। क्या आप जानते हैं इसके कारणों के बारे में कि ज्योतिर्लिंग जमीन से नीचे क्यों होते हैं।
शिवलिंग के प्रकार
शिवलिंग 3 प्रकार के होते हैं। जिसमें सबसे पहले स्वयंभू होते हैं जिन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। ये शिवलिंग भूतल के नीचे स्थित होते हैं। दूसरे प्रकार के शिवलिंग जमीनी स्तर पर स्थित शिवलिंग होते हैं। तीसरे शिवलिंग के प्रकार वो होते हैं जो जमीनी स्तर से ऊपर स्थित होते हैं। इन तीन तरह के शिवलिंग का विभाजन उनकी ऊर्जा के आधार पर होता है।
जानिए क्या होते हैं स्वयंभू या ज्योतिर्लिंग
ऐसे शिवलिंग जो जमीन के भीतर होते हैं उन्हें ज्योतिर्लिंग की संज्ञा दी जाती है। इसमें जबरदस्त मात्रा में ऊर्जा होती है। इसलिए यह जमीनी स्तर से नीचे स्थित होते है। इस तरह के शिवलिंग के दर्शन के लिए भक्त जमीन पर बैठकर या लेटकर इनकी कृपा पाने की कोशिश करते हैं।
भक्त इस तरह के शिवलिंग की पूजा-अर्चना जमीन के अंदर हाथ डालकर करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन लिंगों का निर्माण भगवान शिव के संकल्प से हुआ है। बाद में लिंग किसी भक्त के सामने प्रकट हुए और इनके मिलने के बाद इनकी पूजा अर्चना शुरू हो गई।
जमीनी स्तर पर स्थित शिवलिंग
इस तरह के शिवलिंग को ऋषियों या राजाओं द्वारा स्थापित किया जाता है। उनके पास कम ऊर्जा होती है। भक्त उतनी ही शक्ति सहन कर पाते हैं। उपासक इसके बगल में बैठकर पिंडी की पूजा कर सकते हैं।
जमीनी स्तर से ऊपर स्थित
इस तरह के शिवलिंग जमीनी स्तर से ऊपर की तरफ स्थापित किये जाते हैं। इन्हें भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से स्थापित किया होता है और इनमें सबसे कम ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा को शिव इन्हें भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से स्थापित किया जाता है।
इनमें सबसे कम ऊर्जा होती है जिसे लोग आसानी से सहन कर सकते हैं। उपासक उसके बगल में बने चबूतरे पर बैठकर उसकी विधि पूर्वक पूजा कर सकते हैं। आमतौर पर मंदिरों में इस तरह के शिवलिंग स्थापित किए जाते हैं।
ज्योतिर्लिंग जमीन के नीचे क्यों स्थित होते हैं
मान्यता अनुसार ज्योतिर्लिंग जो स्वयंभू यानि जो स्वयं प्रकट हुए हैं, उनमें ऊर्जा का स्रोत सबसे ज्यादा होता है। इस तरह के शिवलिंग से निकलने वाली ऊर्जा इतनी तीव्र होती है कि भक्त इसे आसानी से सहन नहीं कर सकते हैं। इन्हीं शिवलिंग के प्रकारों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है जो भारत में अलग नामों से प्रचलित हैं। ऊर्जा का सबसे तीव्र प्रवाह होने की वजह से ही इन्हें ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
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