Home 2023 होलिका दहन 6 मार्च या 7 मार्च को, होली कब….? क्या मत हैं काशी सहित अन्य पंचांग का

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होलिका दहन 6 मार्च या 7 मार्च को, होली कब….? क्या मत हैं काशी सहित अन्य पंचांग का

होली का रंगारंग पावन पर्व प्रत्येक वर्ष चन्द्रमास के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन हर्ष, उमंग उल्लास के साथ मनाने की मान्यता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार पूर्णिमा तिथि 6 मार्च, सोमवार को दिन में 4 बजकर 18 मिनट पर लगेगी, जो कि 7 मार्च, मंगलवार को lpसायं 6 बजकर 11 मिनट तक रहेगी। 6 मार्च सोमवार को भद्रा सायं 4 बजकर 18 मिनट से अर्द्धरात्रि के पश्चात् 5 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। भद्रा होने से होलिकादहन करने की मान्यता नहीं है, लेकिन भद्रपूच्छ में होलिकादहन करने को धार्मिक मान्यता है। इस बार 6 मार्च, सोमवार को भद्र पुच्छ में रात्रि 12 बजकर 53 मिनट से भद्रपुच्छ का समय प्रारम्भ हो जाएगा, जिसमें शुभ मुहूर्त में होलिकादहन करना मंगलकारी रहेगा। स्नान-दानादि का पर्व फाल्गुनी पूर्णिमा 7 मार्च, मंगलवार को मनाया जायेगा। फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही श्री चैतन्य महाप्रभु की जयन्ती भी मनाई जाती है।

होलाष्टक

फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक रहता है। होली से पूर्व 8 दिनों का समय होलाष्टक के नाम से जाना जाता है। अष्टमी तिथि को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को बृहस्पति, त्रयोदशों को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा तिथि के दिन राहुग्रह उग्र स्वरूप में माने गए हैं। फलस्वरूप इन 8 दिनों में कोई भी मांगलिक कृत्य नहीं किये जाते 27 फरवरी, सोमवार से प्रारम्भ हुआ होलाष्टक 7 मार्च, मंगलवार को समाप्त हो जाएगा 7 मार्च, मंगलवार को रंगोत्सव का रंगारंग पर्व विधि-विधानपूर्वक मनाया जाएगा। इसी दिन एक- दूसरे की लोग अबीर-गुलाल भी लगाएंगे। काशी में चौसट्टी घाट पर विराजमान भगवती चौसट्टी देवी का दर्शन करने का विधान है। चैत्र कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि 7 मार्च, मंगलवार की सायं 6 बजकर 11 मिनट से प्रारम्भ हो जाएगी जो कि 8 मार्च, बुधवार को सायं 7 बजकर 43 मिनट तक रहेगी।

होलिका पूजन का विधान

पूर्व स्थापित की गई होलिका की विधि – विधानपूर्वक पूजन की जाती है। होलिका पूजन के पूर्व व पश्चात् ताम्रपात्र से गंगाजल या शुद्ध जल अर्पित करने का विधान है। इस दिन भगवान् नृसिंह को भी पूजा-अर्चना का विधान है। होलिकापूजन के पूर्व में श्रीगणेश जी की पूजा पूर्व या उत्तराभिमुख होकर की जाती है। होलिका पूजन में रोली, अक्षत, पुष्प, साबुत हल्दी गांठ, नारियल, बतासा, फच्चा सूत, गोबर के उपले एवं पूजन की अन्य सामग्री रहती है। होलिका दहन के समय होलिका की परिक्रमा करने का विधान है। होलिका के चारों ओर तीन या सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत को लपेटना चाहिए। होलिका की भस्म (अभूत) अत्यन्त ही चमत्कारिक मानी गई है। ऐसी मान्यता है कि होलिकादहन के पश्चात् होलिका की भस्म मस्तक पर लगाने से आरोग्य लाभ के साथ सुख-समृद्धि व खुशहाली मिलती है। होलिका का भभूत सम्पूर्ण शरीर में लगाकर स्नान करने पर आरोग्य सुख मिलता है।

होलिका दहन

6 मार्च सोमवार को फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन होलिकादहन किया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि यदि पूर्णिमा से प्रतिपदा तिथि-अग्रसर हो तो उस दिन प्रदोष काल में होलिकादहन किया जा सकता है। काशी से प्रकाशित प्रमुख पंचांग – श्रीहषिकेश पंचांग, श्रीगणेश आपा जी का पंचांग, विश्व पंचांग (बी.एच.यू.), ज्ञानमंडल सौर पंचांग, चिन्ताहरण पंचांग, तथा वाराणसी के अतिरिक्त अन्यत्र स्थानों से प्रकाशित प्रमुख पंचांग पं० वंशीधर ज्योतिष पंचांग, श्रीमार्तण्ड पंचांग कैलाश पंचांग, पंचांग दिवाकर, पं० श्री वल्लभ मनिराम पंचांग, कालनिर्णय पंचांग आदि के अनुसार 6 मार्च, सोमवार को ही होलिकादहन सम्पन्न होगा। काशी से अन्यत्र प्रकाशित पंचांग श्रीवशिष्ट पंचांग, श्रीब्रजभूमि पंचांग के अनुसार 7 मार्च मंगलवार को होलिका दहन दर्शाया गया हैं यानि 8 मार्च बुधवार को होली खेला जायेगा।

– ज्योतिर्विद् विमल जैन


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Author: Admin Editor MBC

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