शनि प्रदोष व्रत : 4 मार्च को, जानिए कार्य के अनुसार किस दिन रखें प्रदोष व्रत, क्या है व्रत का विधान
प्रदोष व्रत से शिवजी होते हैं प्रसन्न, देते हैं सुख-समृद्धि, खुशहाली का वरदान
कलियुग में भगवान शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है, भगवान शिवजी को समर्पित प्रदोष व्रत की महिमा अपरम्पार है। कलियुग में प्रदोष व्रत को अत्यन्त चमत्कारी गया है। व्रत से मनोकामना की सिद्धि तो होती ही है, साथ ही जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है।
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प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि प्रदोष बेला होने पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ हो जानी चाहिए। इस बार यह व्रत 4 मार्च, शनिवार को रखा जाएगा। फाल्गुन शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 4 मार्च, शनिवार को दिन में 11 बजकर 44 मिनट पर लगेगी जो कि 5 मार्च, रविवार को दिन में 2 बजकर 08 मिनट तक रहेगी। इस बार पुष्य नक्षत्र का संयोग बन रहा है जो कि पूजा-अर्चना के लिए विशेष फलदायी माना गया है। पुष्य नक्षत्र 3 मार्च, शुक्रवार को दिन में 3 बजकर 43 मिनट से 4 मार्च, शनिवार को 6 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 4 मार्च, शनिवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत का विधान –
व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सम दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करके अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान क स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूज अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक कर श्रृंगार करने के पश्चात् उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। परम्प के अनुसार कहीं-कहीं पर जगतजननी पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना की जाती है। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिश या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूज करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है। भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। व्रत से सम्बन्धित कथाएँ सुननी चाहिए जिससे मनोरथ की पूर्ति का सुयोग बनता है। व्रत के दिन नजदीक के शिव मन्दिर में दर्शन-पूजन करके लाभ उठाना चाहिए। शनि प्रदोष व्रत पुत्रार्थियों के लिए विशेष उपयोगी माना गया है। व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए। व्रत के दिन अपने परिवार के अतिरिक्त कहीं कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। अपनी दिनचर्या को संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए।
कार्य के अनुसार किस दिन रखें प्रदोष व्रत –
प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत माने गए हैं, जैसे-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि के लिए रवि प्रदोष शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि के लिए सोम प्रदोष कर्ज से मुक्ति के लिए भौम प्रदोष। अभीष्ट की प्राप्तिएवं मनोकामना की पूर्ति के लिए बुध प्रदोष। विजय व लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गुरु प्रदोष। आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति के लिए शुक्र प्रदोष । पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष । अभीष्ट-मनोकामना की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।
विशेष-
जिन्हें शनिग्रह अढ़या या साढ़ेसाती का प्रभाव हो या जिनकी जन्मकुण्डली में शनिग्रह प्रतिकूल हों, उन्हें देवाधिदेव महादेव शिवजी की कृपा प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए, जिससे शनिजनित दोषों का शमन हो सके। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण एवं असहायों की सेवा व सहायता करते रहना चाहिए। प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है, साथ ही सुख-समृद्धि मिलती है।
– ज्योतिर्विद् विमल जैन
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