जानिए कब और क्या हैं रंग पंचमी, क्यों निभाते हैं ये परम्परा,यह 9 तरह की परंपराएं
रंग पंचमी – 12 मार्च रविवार
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार रंग पंचमी का त्योहार 12 मार्च रविवार को रहेगा। भारत भर में रंग पंचमी का पर्व होली के बाद मनाया जाता है। रंग पंचमी होली का ही समापन रूप है, जो देश के कई क्षेत्रों में चैत्र माकिह की कृष्ण पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार होली के 5 दिन बाद यानी चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।
क्यों मनाते हैं रंगपंचमी
पौराणिक मान्यता के अनुसार रंगों का यह उत्सव चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर पंचमी तक चलता है। इसलिए इसे रंग पंचमी कहा जाता है। इस दिन दिन शोभा यात्राएं निकाली जाती है और होली की तरह देव होली के दिन भी लोग एक दूसरे पर रंग और अबीर डालते हैं।
1. रंग पंचमी के दिन प्रत्येक व्यक्ति रंगों से सराबोर हो जाता। है। सभी एक दूसरे को रंग लगाते हैं। 2. कई लोग इस दिन ताड़ी या भांग पीते हैं और नृत्य एवं गान का मजा लेते हैं।
3. इस दिन अलग अलग राज्यों में अलग अलग पकवान बनाए जाते हैं। जैसे महाराष्ट्र में पूरणपोली बनाई जाती है।
4. शाम को स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद गिल्की के पकोड़े का मजा लिया जाता है। 5. लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली और रंग पंचमी पर जलूस निकालने की परंपरा है, जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड- बाजे नाच-गाने सब शामिल होते हैं।
6. यह त्योहार देवताओं को समर्पित है। यह सात्विक पूजा आराधना का दिन होता है। मान्यता है कि कुंडली के बड़े से बड़े दोष को इस दिन पूजा आराधना से ठीक हो जाते हैं। 7. धन लाभ पाने और गृह कलेश दूर करने के लिए भी यह रंग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा होती है।
8. इस दिन श्री राधारानी और श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है।
9. राधारानी के बरसाने में इस दिन उनके मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन लाभ होते है।
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