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आखिर क्यों लिया जायेगा बाबा विश्वनाथ के स्पर्श दर्शन का शुल्क….? जानिए मंदिर के न्यासियों और विद्वानों की राय

12 ज्योतिर्लिंगों में एक काशी में विराजे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भी उज्जैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग की तर्ज पर शुल्क लेकर बाबा का स्पर्श दर्शन कराने के एक प्रस्ताव पर काशी के विश्वनाथ भक्तों में पक्ष और विपक्ष में चर्चाएं शुरू हो गई है। काशी विश्वनाथ न्यास परिषद ने पिछले दिनों एक प्रस्ताव के तहत काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन के बढ़ते भीड़ को काबू में करने के लिए स्पर्श दर्शन के लिए शुल्क लगाने की योजना है। “मोक्ष भूमि” ने मंदिर से जुड़े न्यासी सहित तमाम विद्वानों की इस विषय में राय जानने का प्रयास किया।

वाराणसी के कमिश्नर और विश्वनाथ मंदिर के सर्वे सर्वा कौशल राज शर्मा ने यह स्पष्ट किया है कि विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन को कोई शुल्क लगाने का अभी निर्णय नहीं हुआ है और ऐसा कोई निर्णय भविष्य में अगर होगा तो उसकी जानकारी दी जाने की बात कही है।

न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेंद्र पांडे जी ने दर्शनर्थियों के दर्शन मैनेजमेंट को काबू करने के लिए स्पर्श दर्शन के शुल्क लगाने के बाद कही और ऐसे प्रस्ताव का समर्थन करने की भी बात को दोहराई। साथ ही यह भी कहा कि आम दर्शनर्थियों के लिए भी मंदिर प्रबंधन कोई विशेष उपाय जरूर करेगा।

न्यास के सदस्य और शहर के प्रसिद्ध ज्योतिषी प्रोफेसर चंद्रमौली उपाध्याय जी का कहना है की 22 फरवरी के बैठक में ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया था और ना ही आगे लाए जाने की संभावना है। उन्होंने कहा कि सशुल्क स्पर्श दर्शन का निर्णय व्यावहारिक नहीं है।

अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री और गंगा महासभा के महामंत्री जितेन्द्रानंद सरस्वती जी ने अपनी तलख अंदाज में कहा कि बाबा के स्पर्श दर्शन को सशुल्क बनाना, मंदिर को व्यापार का अड्डा बनाना है जो महापाप है। 1808 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी अमीर और गरीब के बीच भगवान और देवताओं को बांटा कर शुल्क व्यवस्था किया था। सामान्य जन के बीच दर्शन के आधार पर भेदभाव करना धार्मिक दृष्टि से अपराध है। आज काशी विश्वनाथ मंदिर में भी उसी व्यवस्था को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है जो पूरी तरीके से गलत है।

काशी हिंदू विद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागध्यक्ष प्रोफेसर विनय पांडे जी की माने तो यह कदम सर्वथा अनुचित है। भीड़ को आधार बनाकर भक्तों के बीच भेदभाव लाना एक मानसिक अपराध भी है।अव्वल तो यह है देव प्रतिमाओं को छू के दर्शन करने की शास्त्रों में मनाही है लेकिन किसी अन्य देवालय का आधार बनाकर सशुल्क स्पर्श दर्शन कहीं से भी न्यायोचित नहीं है। दक्षिण भारत के देवालयों में भी शुल्क से लाइन को छोटी की जाती है जो आगे जाकर सभी एक लाइन में दर्शन करते है।

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी जी का कहना है यह प्रस्ताव सर्वथा अनुचित है और ऐसे प्रस्ताव का हमारे द्वारा विरोध किया जाएगा।

मंदिर न्यासी प्रोफेसर वृज भूषण ओझा जी का कहना है कि व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए चर्चाएं होना उचित है लेकिन न्यास द्वारा ऐसा किसी भी प्रस्ताव पर हाल फिलहाल में कोई फैसला लेने नहीं जा रही है जरूरत हुआ तो सशुल्क स्पर्श दर्शन के लिए आम जनता से भी राय लिया जाएगा।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर सुभाष पांडे जी की माने तो यह प्रस्ताव दर्शनार्थियों के लिए सर्वथा अनुचित है। सत्य तो यह है ज्योतिर्लिंग का शास्त्रों में स्पर्श दर्शन की मनाही है, इससे तेज का क्षरण होता है बावजूद उसके स्पर्श दर्शन की परंपरा पर टिकट लगाना यह राष्ट्रमत और शास्त्र मत के विरोध में है।


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Author: Admin Editor MBC

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