Mahabharat katha : आखिर क्यों गंगा ने मार दिया था अपने 7 बेटों को
महाभारत में कई ऐसी कहानियां हैं जिनके बारे में लोगों को पता तो है, लेकिन उसके पीछे की कथा का अंदाज़ा नहीं है। ऐसी ही एक कहानी है मां गंगा की।
भारत में किताबों का महत्व कितना है ये तो हम सभी जानते हैं और ऐसे में अगर पौराणिक ग्रंथों की बात करें तो उनकी पूजा की जाती है। भारतीय इतिहास किसी विशाल समुद्र की तरह है जिसे इतना समृद्ध बनाने में पौराणिक कथाओं का भी हाथ रहा है। राम और हनुमान तक भारत में हमें भगवान के कई रूप देखने को मिलते हैं और इनके बारे में हम पौराणिक ग्रंथों से जानते हैं। रामायण, महाभारत, भागवत गीता सभी में ऐसी कई कहानियां बताई गई हैं जिनके बारे में शायद आपको न पता हो।
ऐसे कई राज़ इन कथाओं में छुपे हैं जो धर्म की कड़ी को जोड़ते हैं। महाभारत की बात करें तो ऐसी ही एक कहानी है जो न सिर्फ हमें मां गंगा के बारे में जानकारी देती है बल्कि वो भीष्म पितामह की जिंदगी केबारे में जानकारी देता है।
महाभारत कथा में आज मां गंगा अपने 7 बेटों को पैदा होते ही नदी में डुबोकर मार देती हैं।
महाभारत की कथा-
महाभारत में गंगा, राजा प्रतिपद और शांतनु की कथा है जहां श्राप मुक्ति का भी जिक्र है। दरअसल, स्वर्ग में 8 वासु थे जिन्हें श्राप मिला था कि वो पृथ्वी पर पैदा होंगे। पृथ्वी जिसे मृत्युलोक भी कहा जाता है वहां इंसान का जन्म पाप भोगने के लिए भी होता है।
इन 8 वासु का उद्धार करने के लिए गंगा ने ये कदम उठाया था। उन्हें अपने उदर से जन्म देकर गंगा ने अगले ही दिन मार दिया था ताकि उनका पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप पूरा हो सके और वो स्वर्गलोक में वापस जा सकें। गंगा ने 7 बेटों को तो मार दिया था, लेकिन आठवें बेटे के जन्म के बाद गंगा के पति शांतनु ने गंगा को रोक दिया था जिसके बाद गंगा शांतनु को छोड़कर चली गई थीं और उस आठवें पुत्र का नाम था भीष्म पितामह जिन्हें गंगा पुत्र भी कहा जाता है।
ये थी गंगा की कथा जिसे महाभारत में बताया गया है। पर इसमें मौजूद लोग कौन थे, श्राप क्या सिर्फ वासु के ऊपर था और वासु असल में थे कौन इसके बारे में भी हम आपको बताते हैं।
आखिर कौन थे 8 वासु-
हिंदू धर्म में वासु (वसु) असल में इंद्र और विष्णु के अनुयायी माने जाते हैं जो स्वर्ग में उनके साथ ही रहते थे। जिन अष्ट वासु का जिक्र यहां हुआ है उन्हें रामायण में कश्यप और अदिति के पुत्र बताया गया है और महाभारत में मनु या ब्रह्मा प्रजापति के पुत्र बताया गया है। इनके नाम भी रामायण और महाभारत में अलग हैं, लेकिन इनके नामों का मतलब एक है। ये 8 वासु 8 अलग-अलग चीज़ों को दर्शातें हैं जैसे, पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, सूर्य, आकाश, चंद्रमा और सितारे।
कैसे मिला था इन 8 वसु को श्राप?
महाभारत के अनुसार, इन 8 वासु में से एक प्रभास की पत्नी द्यू ने एक दिन जंगल में एक गाय को देख लिया। ये गाय कोई आम गाय नहीं थी बल्कि ऋषि वशिष्ठ की गाय थी जिसे धरती पर उद्धार करने के लिए भेजा गया था। प्रभास ने अपने अन्य 7 भाइयों की मदद से इस गाय को चुरा लिया।
ऋषि वशिष्ठ को जब ये पता चला तो उन्होंने इन सभी को श्राप दे दिया कि ये मृत्यु लोक में जन्म लेंगे। इसके बाद सभी वासु क्षमा के लिए ऋषि के पास पहुंचे और उन्होंने उनमें से 7 को ये कहा कि वो अपने जन्म के 1 साल के अंदर ही मृत्यु लोक छोड़ देंगे और इस श्राप का पूरा दंड प्रभास को भोगना होगा। प्रभास दूसरी बार जन्म लेकर भीष्मा या भीष्म पितामह बने।
शांतनु और गंगा का श्राप और उनकी कथा-
जहां भी महाभारत का जिक्र आता है और गंगा के अपने ही पुत्रों को मारने की बात सामने आती है वहां पर वासु का श्राप ही बताया जाता है, लेकिन असल में ये गंगा और शांतनु के यहां ही क्यों पैदा हुए उसके पीछे भी एक कहानी है।
ये कहानी शुरू होती है शांतनु के पहले जन्म से जहां वो इक्ष्वाकु साम्राज्य को महान राजा महाभिष हुआ करते थे। उन्होंने हज़ारों अश्वमेध यज्ञ करवाए थे और मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में उन्हें जगह मिली थी। स्वर्गलोक में ब्रह्मा के दरबार में उनकी बेटी गंगा भी मौजूद थीं। इसी के साथ, अन्य देवतागण और अनुयायी भी मौजूद थे।
एक दिन जब दरबार में मौजूद सभी प्रार्थना मुद्रा में थे तब हवा के कारण गंगा के वस्त्र हिल गए। सभी ने ये देख अपना सिर झुका लिया, लेकिन महाभिष ने ऐसा नहीं किया। इसी के साथ, गंगा ने भी उन्हें रोका नहीं और दोनों एक दूसरे को देखते रहे।
ये देख भगवान ब्रह्मा क्रोधित हो गए और दोनों को मृत्यु लोक में पैदा होने का श्राप दिया। गंगा तभी वापस आ सकती थीं जब वो मृत्युलोक में महाभिष का दिल तोड़ देतीं।
ऐसा करने के बाद महाभिष ने ब्रह्मा से क्षमा मांगी और कुरू वंश के राजा प्रतिपा के घर जन्म लेने की बात कही। ऐसे में महाभिष की ये मंशा ब्रह्मा ने मान ली।
एक दिन कुरू राज प्रतिपा जंगल में ध्यान मग्न थे और गंगा एक खूबसूरत स्त्री का रूप लेकर उनकी दाईं जांघ पर जाकर बैठ गईं। जब प्रतिपा ने इसका कारण पूछा तो गंगा ने उनसे शादी की इच्छा जताई, लेकिन प्रतिपा का कहना था कि दाईं जांघ की जगह बेटी, बहू या फिर बेटे की होती है तो आप मेरे बेटे से शादी कर लीजिएगा। इसको लेकर गंगा मान गईं और उसके बाद जब प्रतिपा और उनकी पत्नी सुनंदा का बेटा शांतनु पैदा हुआ तो उसे किस्मत वश हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया।
शांतनु जब बड़े हुए तो जंगल में उन्होंने गंगा को देखा और उनसे शादी की इच्छा जताई।
गंगा और शांतनु की शादी की शर्त-
इस बात को मानने के लिए गंगा ने एक शर्त रखी और शांतनु से वचन लिया कि गंगा जो भी करेंगी शांतनु उनसे कभी सवाल नहीं करेंगे। जिस दिन शांतनु ने उनसे सवाल किया वो जवाब देकर फिर उन्हें छोड़कर चली जाएंगी।
ऐसे में गंगा और शांतनु दोनों ही पति-पत्नी की तरह हस्तिनापुर वापस आए और दिन बीतने के साथ गंगा ने शांतनु के पहले बेटे को जन्म दिया और उसके अगले ही दिन गंगा अपने नवजात को लेकर गईं और नदी में डुबो दिया। ऐसे ही गंगा ने 7 वासु को उनके श्राप से मुक्ति दे दी।
आठवीं संतान के समय शांतनु खुद को रोक नहीं पाए और गंगा को रोक दिया और पूछ लिया कि हस्तिनापुर का क्या होगा, उनका क्या होगा और क्या कभी उन्हें वारिस मिलेगा। इसके बाद गंगा ने उन्हें पूरी कहानी बताई और अपने बेटे के साथ चली गईं।
गंगा ने अपने बेटे को ऋषि वशिष्ठ से शास्त्रों की शिक्षा दिलाई और परशुराम से युद्ध अभ्यास की शिक्षा दिलवाई। युवा होने पर देवव्रत (भीष्म पितामह) को शांतनु के पास सौंप दिया।
इसके आगे की कहानी है जब देवव्रत भीष्म पितामह बनते हैं और उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिलता है, लेकिन वो फिर कभी।
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