Narad Jayanti: पढ़िए नारद मुनि के पत्रकार बनने की पौराणिक कथा, नारद मुनी थे पूर्व जन्म में….
नारायण! नारायण! कहते हुए नारद मुनी जहां चाहे वहां प्रकट हो जाते हैं। ऐसा कथाओं में भी है और टीवी सीरियल्स में भी देखा जाता है।
लेकिन जब ये मुनी हैं तो फिर देवर्षि कैसे बन गए? ये कहीं भी कैसे प्रकट हो जाते हैं? इनके पास इतनी सूचनाएं कैसे रहती हैं? ये देवताओं का पहला पत्रकार कैसे बनें? नारद मुनी के देवर्षि और पत्रकार बनने की कथा बहुत रोचक है।
हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को नारद मुनी का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इस साल यानी 2023 में नारद जयंती 6 मई को मनाई जाएगी। इस अवसर पर हम आपको बताते हैं नारद मुनी के देवर्षि और पत्रकार बनने की रोचक कथा।
नारद मुनि के पत्रकार बनने की कथा दरअसल पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनी अपने पिछले जन्म में एक गन्धर्व थे। इनका नाम था उपबर्हण और इनका निवास इन्द्रलोक में था। ये एक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे जिसकी वजह से अप्सराएं इनके आस पास ही रहती थीं। उपबर्हण इन्द्रलोक में आनंद में लीन रहते, अप्सराओं के साथ क्रीडा करते, नृत्य का आनंद लेते और सोमरस पीकर सोये रहते थे।
एक बार अप्सराएं और गन्धर्व ब्रह्मा की उपासना कर रहे थे। इसी वक़्त उपबर्हण वहां आये और अप्सराओं को छेड़ने लगे। इससे ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और उन्होंने उपबर्हण को श्राप दे दिया कि जाओ तुम्हारा जन्म शुद्र योनी में होगा। उपबर्हण का अगला जन्म एक दासी के घर हुआ। लेकिन उपबर्हण ब्राह्मणों की खूब सेवा करते और उनका ही जूठन खाते थे। इससे उनका पाप कटित होता गया।
पांच वर्ष की आयु में ही माता का निधन हो जाने से ये अकेले हो गए और फिर ये प्रभु की भक्ति में ही लीन हो गए। एक दिन जब ये प्रभु भक्ति में मग्न थे तो आकाशवाणी हुई कि अगले जन्म में प्रभु के दर्शन होंगे। प्रभु की कठोर भक्ति की वजह से इनको परम ज्ञान की प्राप्ति हुई। अगले जन्म में स्वयं ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में इनका प्राकट्य हुआ और तभी से इन्हें देवर्षि कहा जाने लगा।
सभी वेद पुराणों सहित व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे विषयों का ज्ञान हो गया। ब्रह्मा के मानस पुत्र होने और प्रभु की अनंत भक्ति में लीन होने की वजह से इनको विशेष शक्ति प्राप्त हुई कि ये कहीं भी आ जा सकते हैं और जहां मर्जी वहां प्रकट हो सकते हैं। नारद मुनी तीनों लोक सहित कहीं भी आ जा सकते हैं।
इसकी वजह से इनको हर प्रकार की ख़बर रहती है। इसलिए ये सूचना सम्प्रेषण का काम भी करते हैं। प्रकांड विद्वान होने, कहीं भी आने जाने और सूचना प्रसार करने की वजह से इन्हें संसार का पहला पत्रकार माना जाता है। देवर्षि नारद के जीवन का एक ही मूलमंत्र हैं – सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:। इसका मतलब ये है की जहां रहे जैसे भी रहे भगवान का ध्यान करते रहें।
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