क्या आप जानते हैं शंख से शिवजी ने किया था विषपान! आज भी है मंदार पर्वत पर मौजूद
विष्णु पुराण के अनुसार जब महर्षि दुर्वासा के श्राप की वजह से स्वर्ग लोक धन, वैभव और ऐश्वर्य विहीन हो गया था, तब भगवान विष्णु ने समस्त देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए कहा।
इसके बाद असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन को लेकर सहमति हुई। वासुकी नाग की नेती और मंदराचल पर्वत से समुद्र को मथा गया था। तब उसमें से अमृत कलश के साथ 14 कई बहुमूल्य रत्न बाहर निकले थे।
हालांकि इन सबमें सबसे पहले हलाहल विष निकला था। सृष्टि के कल्याण के लिए महादेव ने इस विष को पी लिया था जिस कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था और इसी वजह से शिव जी का एक नाम नीलकंठ भी है। भोलेनाथ ने शंख से पीया था विष कहते हैं विष पान के लिए भोलेनाथ ने एक पात्र का प्रयोग किया था। यह पात्र शंख था। आज भी मंदार पर्वत बिहार के भागलपुर के पास बांका जिला में स्थित है। इसी मंदार पर्वत पर यह शंख कुंड भी है। हैरान करने वाली बात ये है कि हर साल शिवरात्रि के ठीक एक दिन पहले यह शंख कुंड से ऊपर आ जाता है। कहा जाता है कि आम दिनों में यह कुंड के अंदर ही रहता है। इस शंख को पांचजन्य शंख कहते हैं। आज से करीब 10 साल पहले जब कुछ श्रद्धालुओं ने कुंड की साफ सफाई की थी तब उन्हें पांचजन्य शंख मिला था। माना जाता है कि मंथन से निकला रत्न स्वरूपा कामधेनु भी इस कुंड में है। इस कुंड की गहराई का अवलोकन आज तक नहीं किया जा सका है, लेकिन इसमें पाए गए पांचजन्य शंख को देवताओं की जीत के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
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