भगवान जगन्नाथ को प्रिय है खिचड़ी, जानिए क्यों सुबह के भोग में सबसे पहले उन्हें खिलाई जाती है खिचड़ी ?
आपने अगर देश के पुराने या प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में दर्शन किए होंगे तो आपने गौर किया होगा कि भगवान कृष्ण के मंदिरों में अक्सर खिचड़ी का भोग जरुर लगाया जाता है। यहां तक कि उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथजी के मंदिर में भी रोजाना भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
माना जाता है कि खिचड़ी जिसे उड़िया में खेचुड़ी भी कहा जाता है, भगवान जगन्नाथ के प्रिय भोग में से एक है। आइए यहां जानते है कि कैसे भगवान जगन्नाथ को सकल धूप (सुबह के भोग) के रुप में चढ़ाई जाने लगी खिचड़ी और इसके पीछे की कहानी।
ये है खिचड़ी खिलाने की कहानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण की परम उपासक थीं कर्मा बाई, जो कि जगन्नाथ पुरी में रहती हैं और भगवान से अपने पुत्र की तरह ही स्नेह करती थीं। भगवान जगन्नाथ कर्मा बाई की मन इच्छा को जान गए और खुद उनके सामने प्रकट होकर भूख लगी होने की बात कही। कर्मा बाई ने झटपट खिचड़ी बना दी। भगवान जगन्नाथ ने उसे बड़े चाव से खाया और कर्मा बाई से कहा कि मुझे यह बहुत पंसद आई है अब से वे रोज खिचड़ी खाने आया करेंगे। एक दिन एक महात्मा कर्माबाई के पास आकर बोले कि बिना स्नान के पूजा करने और भोग लगाने नहीं लगाना चाहिए। अगले दिन कर्माबाई स्नानादि करके खिचड़ी बनाई लेकिन उसमें देर हो गई। तभी भगवान पहुंचे, और बोले शीघ्र करो मां, मंदिर के कपाट खुल जाएंगे। जगन्नाथ जी ने जल्दी-जल्दी खिचड़ी खाई और पानी पिए बिना मंदिर में पहुंच गए थे। लेकिन उनके मुंह पर जूठन लगी रह गई।
जब पुजारी ने खोले कपाट मन्दिर के पुजारी ने जैसे ही मंदिर के पट खोले तो देखा भगवान के मुख पर खिचड़ी लगी हुई है। पुजारी बोले, ‘प्रभुजी, यह खिचड़ी आपके मुख पर कैसे लग गई है? प्रभु ने बताया, पुजारीजी, मैं रोज मेरी कर्मा बाई के घर पर खिचड़ी खाकर आता हूं। जब कर्माबाई ने प्राण त्याग दिए फिर एक दिन आया, जब कर्मा बाई ने प्राण त्याग दिए, उस दिन पुजारी ने मंदिर के पट खोले तो देखा, भगवान की आंखों में आंसू थे, जब पुजारी ने इसका कारण पूछा तो भगवान ने बताया, ‘पुजारी जी, आज मेरी मां कर्मा बाई इस लोक को छोड़कर मेरे निज लोक को विदा हो गई हैं। अब मुझे कौन खिचड़ी बनाकर खिलाएगा? पुजारी ने कहा, ‘प्रभु जी, आपको मां की कमी महसूस नहीं होने देंगे। आज के बाद आपको सबसे पहले खिचड़ी का भोग ही लगेगा।’ इस तरह आज भी जगन्नाथ भगवान को सबसे पहले खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
युगों से चली आ रही है परांपरा
खिचड़ी, जिसे उड़िया में खेचुडी कहा जाता है, युगों से भगवान जगन्नाथ को भोग के रुप में चढ़ाया जा रहा है। भगवान को सकला धूप में (उड़िया में सकला यानी सुबह को कहा जाता है और धूपा मतलब देवता को भोग लगाना होता है) में कम से कम पांच प्रकार की खेचुड़ी चढ़ाई जाती है। ग्रंथों के अनुसार, पुरी में 12वीं शताब्दी के मंदिर में खेचुड़ी की पांच किस्में पकाई जाती हैं। जिसमें – टाटा खेचुड़ी, नुखुरा खेचुड़ी, तैला खेचुड़ी, सना खेचुडी और माजुरी खेचुडी होती हैं। भोग में हर दिन भगवान को खेचुड़ी के कई बर्तन चढ़ाए जाते हैं। भोग के बाद इसे भक्तों में प्रसाद के रुप में वितरित कर दिया जाता है।
खिचड़ी खाने के फायदे जानें
खिचड़ी पौष्टिक होने के साथ साथ बहुत ही हल्की और आसानी से पचने वाली डिश है। खिचड़ी में चावल, दाल और घी का संयोजन आपको कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम प्रदान करता है। कई लोगों इसके पोषण मूल्य को बढ़ाने के लिए इसमें सब्जियां भी मिला देते हैं। ये ही वजह है कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे बहुत चाव से खाया जाता है। दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से खिचड़ी बहुत मशहूर हैं। उत्तर भारत में मकरसंक्रान्ति के पर्व पर मूंग दाल की खिचड़ी बनाई जाती है, वहीं राजस्थान में अक्षय तृतीया के मौके पर भी खिचड़ी बनाई जाती है जिसे खीच कहा जाता है और गुजरात में कई जगह खिचड़ी को खिचड़ा भी कहा जाता है। उड़िया में खेचुडी कहा जाता है।
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