Sawan tripund : शिव भक्त माथे पर क्यों लगाते हैं त्रिपुंड? त्रिपुण्ड की तीन लाइन का मतलब
सावन का महीना भगवान शिव-शंकर को समर्पित होता है। इस महीने में शिव जी की विशेष पूजा की जाती है। भोलेनाथ की कृपा बनाए रखने के लिए शिव भक्त कई तरह के उपाय करते हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय है माथे पर भस्म या चंदन से तीन रेखाएं बनाना जिसे त्रिपुंड कहते हैं। शिवजी को स्वयं भी हम हर चित्र या प्रतिमा में त्रिपुंड लगाए हुए ही देखते हैं।
सावन में आपने देखा होगा कि भक्त भी विशेष रूप से अपने माथे पर त्रिपुंड धारण करते हैं जिसे तीन अंगुलियों से लगाया जाता है। सावन ही नहीं कई मौकों पर शिव की पूजा के दौरान त्रिपुंड का विशेष महत्व है। इसीलिए इसे शिव तिलक भी कहते हैं। पर कम ही लोग जानते हैं कि त्रिपुंड का क्या महत्व है, इसे लगाने के पीछे आध्यात्म ही नहीं विज्ञान भी एक वजह है।
आइए जानते हैं कि इसको कैसे लगाया जाता है और आखिर यह त्रिपुंड शिवजी को इतना प्रिय क्यों है?
क्या है त्रिपुंड?
माथे पर भस्म या चंदन से बनी तीन रेखाओं को त्रिपुंड कहते हैं। इस त्रिपुंड को मध्यमा, अनामिका और अंगूठे से बनाया जाता है। त्रिपुण्ड की तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है. प्रत्येक रेखा में 9 देवताओं का वास होता हैं। शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति नियमित अपने माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड यानी तीन रेखाएं सिर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक धारण करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते है। भगवान के मस्तक पर सफेद चंदन या भस्म का त्रिपुंड लगाया जाता है जबकि शैव परंपरा के सन्यासी अपने माथे पर खास प्रकार से तैयार की गई भस्म या फिर सामान्य चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं। भस्मजली हुई वस्तुओं की राख होती है. सभी राख भस्म के रूप में प्रयोग करने योग्य नहीं होती है। उन्हीं राख का भस्म प्रयोग करें जो पवित्र कार्य के हवन, यज्ञ से प्राप्त हुई हो
ये भी त्रिपुंड से जुड़ी एक कथा
भगवान शिव के माथे पर भभूत यानी राख से बनी तीन रेखाएं हैं। माना जाता है कि यह तीनों लोको का प्रतीक है। इसे रज, तम और सत गुणों का भी प्रतीक माना जाता है। लेकिन शिव के माथे पर भभूत की यह तीन रेखाएं कैसे आयी इसकी बड़ी रोचक कथा है। पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजपति के यज्ञ कुंड में सती के आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव उग्र रूप धारण कर लेते हैं और सती के देह को कंधे पर लेकर त्रिलोक में हहाकार मचाने लगते हैं। अंत में विष्णु चक्र से सती के देह को खंडित कर देते हैं। इसके बाद भगवान शिव अपने माथे पर हवन कुंड की राख मलते और इस तरह सती की याद को त्रिपुंड रूप में माथे पर स्थान देते हैं।
त्रिपुंड का वैज्ञानिक महत्व
विज्ञान कहता है कि त्रिपुण्ड चंदन या भस्म से लगाया जाता है। चंदन और भस्म मस्तक को शीतलता प्रदान करता है। शिवजी के रौद्र रुप को शांत रखने के लिए उनके मस्तक पर चंदन लगाया जाता है। माना जाता है कि अगर उग्र स्वभाव वाले व्यक्ति के माथे पर चंदन लगाए तो उसके व्यवहार में सौम्यता आती है। वहीं इसे धारण करने से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है, ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है। इसे लगाने से नकारात्मक ऊर्जा भी दूर हो जाती है और मन में सात्विकता का प्रवाह होता है।
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